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संतान के साथ सुखी मां

Aha Zindagi

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August 2025

मां बच्चे की दुनिया गढ़ती है और बच्चा उसकी दुनिया बन जाता है। जन्म से पहले, गर्भकाल से ही जो नाता गर्भनाल के ज़रिए जुड़ जाता है, वह एक उम्र के बाद कमज़ोर क्यों पड़ जाता है, यह सवाल ही पीड़ादायक है। परंतु सवाल ज़रूरी है, क्योंकि इसी से निकलेगी मां के सुख की राह...

- - डॉ. मोनिका शर्मा

संतान के साथ सुखी मां

मां और बच्चे के नाते से अनूठा इस संसार में क्या होगा! एक यही रिश्ता है जो बच्चे के जन्म से पहले ही बन जाता है। मां उस अजन्मे की उपस्थिति को महसूस कर सकती है और गर्भस्थ शिशु भी मां से प्रेम, पोषण और परवाह पाने लगता है। परवरिश के मोर्चे पर मां बच्चे के संसार में आने से पहले ही डट जाती है। दुनिया में आने के बाद वही बच्चे को जीवन से जुड़ने की सधी समझ देती है। बोलना ही नहीं मन की कहना भी सिखाती है। दूसरों का मन समझने का पाठ पढ़ाती है। परिस्थितियों को देखने-समझने और आंकने की व्यावहारिक दृष्टि देती है। परिवार और परिवेश में अपनों-परायों से जुड़ाव की सीख भी मां से मिले संस्कारों में समाहित होती है।

बावजूद इसके ज़माने की कड़वी हक़ीक़त है कि उम्र के साथ सांसारिक रंग-ढंग से जुड़ते बच्चे, मां से ही दूर होते जाते हैं। रिश्तों-नातों को निभाना सिखाने वाली मां से जुड़ा मन का बंधन ही ढीला पड़ने लगता है। मां कमोबेश हर मोर्चे पर धीरे-धीरे पीछे छूटने लगती है।

ज़रूरी है कि नई पीढ़ी के पालन-पोषण की यात्रा में आत्मीय आधार पर जुड़े इस रिश्ते की घनिष्ठता को ताउम्र बनाए रखने का सबक़ भी दिया जाए। स्त्रियों की भावनात्मक जद्दोजहद और ज़िम्मेदारियों से जुड़ी आपाधापी की अनदेखी करने वाले हमारे सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में यह दायित्व भी स्वयं माताएं ही उठाएं।

प्रेम बरसाएं और बटोरना भी सीखें

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