कौन है गुरु?
Sadhana Path
|July 2025
जीवन के प्रत्येक मोड़ पर हमें गुरु की आवश्यकता महसूस होती है। गुरु हमारे अज्ञान को दूर करके हमारे अंतर में ज्ञान की रोशनी प्रकाशित करता है। जीवन के रास्तों में हमारा पथ-प्रदर्शक बनकर हमारे साथ चलता है। कौन है गुरु तथा कैसे वह हमारे जीवन संवारता व निखारता है, जानें लेख से।
संसार का छोटे-से-छोटा कार्य सीखने के लिए भी कोई न कोई गुरु तो चाहिए और फिर बात अगर जीवात्मा को परमात्मा का साक्षात्कार करने की आती है तो उसमें सद्गुरु की आवश्यकता क्यों न होगी ? गुरु की कृपा के बिना तो भवसागर से तरा नहीं जा सकता है। गुरु कौन है? इसका जीवन में क्या महत्त्व है ? जब भी यह प्रश्न या जिज्ञासा मन में उठती है तो किताबें, ग्रंथ या लोग आदि एक ही उत्तर सामने रखते हैं कि गुरु ज्ञान का भंडार है। 'गु' यानी अंधकार, 'रु' यानी प्रकाश अर्थात् जो हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी उजाले में लाता है, वही गुरु है। जो हमें वास्तविक, आंतरिक जीवन की ओर उन्मुख करता है, जीवन को आध्यात्मिक एवं रूपांतरित करता है और उस परमब्रह्म परमेश्वर का साक्षात्कार या अनुभव कराने में हमारी मदद करता है। जो हमें मुक्त करने में हमारी मदद करता है वह गुरु कहलाता है।
एक व्यक्ति के जीवन में अनेक गुरु होते हैं। बाल्यावस्था में बच्चे पहले गुरुकुल जाया करते थे, अब स्कूल जाते हैं। व्यक्ति को अक्षर ज्ञान देने वाला सज्जन 'विद्या गुरु' कहलाता है। अक्षर ब्रह्म से साक्षात्कार कराने वाले विद्या गुरु का उपकार अविस्मरणीय है।
बालक कुछ बड़ा होता है, तो उसे उपनयन संस्कार दिया जाता है। युवा होने पर विवाह-संस्कार, इस प्रकार के षोडश संस्कार हिंदू सनातन धर्म में प्रचलित हैं। इन संस्कारों को कराने वाले सज्जन को कुलगुरु या कुल पुरोहित कहते हैं। व्यक्ति के जीवन में विभिन्न संस्कारों द्वारा नवीन परिवर्तन लाने वाले कुलगुरु का उपकार भी कभी भुलाया नहीं जा सकता।
ब्रह्मचारी जब युवा हो चलता है तो कुछ कमाने के लिए व्यापार-व्यवसाय किंवा अपने मनपसंद कार्य क्षेत्र की ओर प्रवृत्त होता है, तो उसे अपने क्षेत्र के अनुभवी व्यक्ति की शरण में जाना होता है। वहां वह अपने उस्ताद किंवा व्यवसाय गुरु का वरण करता है। व्यवसाय गुरु उसे उंगली पकड़कर कमाना सिखाता है। अतः व्यवसाय गुरु का योगदान भी जीवन में अविस्मरणीय होता है।
इसी प्रकार व्यक्ति जब ज्ञान के क्षेत्र में परिपक्व होकर अध्यात्म की ओर जाना चाहता है, तो उसे अध्यात्म गुरु, मंत्र गुरु अथवा दीक्षा गुरु की आवश्यकता पड़ती है। शिष्य के संताप को हरने वाले ऐसे मंत्र गुरु अत्यंत दुर्लभ कहे गए हैं, क्योंकि वही वास्तव में सर्वोच्च परम गुरु कहे गए हैं। यथा-
Diese Geschichte stammt aus der July 2025-Ausgabe von Sadhana Path.
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ओशो शब्दों के सम्राट हैं
पहली बात तो ओशो एक विचारक हैं, महान विचारक। जो किसी धर्म से नहीं विचारों से जुड़ा रहा। विचारों से जुड़ने का मतलब है सत्य से जुड़ना। जो सत्य से जुड़ता है सब उसके दुश्मन हो जाते हैं, यही कारण था कि ओशो के इतने दुश्मन पैदा हुए। ओशो के साथ बस एक दिक्कत रही कि 99 प्रतिशत वह लोग उनके खिलाफ रहे जिन्होंने उन्हें न कभी सुना है, न ही कभी पढ़ा है।
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