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पृथ्वी पर घटा चमत्कार था रजनीशपुरम

Sadhana Path

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December 2023

अमेरिका के ऑरेगोन में बना रजनीशपुरम आज एक बार फिर चर्चा में है, और चर्चा का कारण नेटफ्लिक्स पर आई डॉक्यूमेंट्री 'वाइल्ड वाइल्ड कंट्री' है। जिसमें ओशो के अमेरिका में बसने और वहां रजनीशपुरम के बनाने और मिटाने की कहानी को दर्शाया गया है। आखिर रजनीशपुरम था क्या, क्या रजनीशपुरम की हकीकत वही थी जिसे फिल्म में दिखाया गया या कुछ और? अमेरिका में ओशो को जेल क्यों जाना पड़ा? क्या रजनीशपुरम ओशो की असफलता का कारण था? इन सभी प्रश्नों के उत्तर आइए ओशो की जुबानी ही जानते हैं

पृथ्वी पर घटा चमत्कार था रजनीशपुरम

अमेरिका में ओशो के रजनीश पुरम आश्रम के बारे में जो भी लोग जानते हैं या जिन्होंने भी उसे देखा-सुना है वह जानते हैं कि आश्रम अपने आप में एक चमत्कार था, ओशो व ओशो के संन्यासियों की सफलता का अद्भुत परिणाम व प्रमाण था पर यदि वह इतना ही अच्छा एवं सही था तो ध्वस्त क्यों हुआ? जहां तमाम देवी-देवताओं के मठ-मंदिर एवं गुरुओं के आश्रम आज न केवल विद्यमान है बल्कि वह और फल-फूल रहे हैं। उनकी शाखाओं में और वृद्धि हो रही है तो ओशो का रजनीशपुरम ध्वस्त क्यों हुआ? रजनीशपुरम के ध्वस्त होने के पीछे उसका अतुलनीय रूप से सफल होना था। देखा जाए तो वह इस पृथ्वी पर किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसका अद्भुत होना ही अमेरिका के लिए एक चुनौती बन गया, जिसको नष्ट करना ही अमेरिकियों के लिए अपने वजूद को जिंदा रखने का एक मात्र उपाय था। 

आश्रम ओशो का था, देशनाएं ओशो की थी इसलिए इस विषय में जितना बेहतर ओशो बता सकते हैं उतना कोई और नहीं। फिर 'अमृत की बूंद पड़ी' प्रश्नोत्तर प्रवचन शृंखला में ओशो ने ऐसे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि-

पहली बात, वह प्रयोग कभी असफल नहीं हुआ। वह प्रयोग बेहद सफल रहा है। और उसकी सफलता ही मुसीबत की जड़ थी। जो प्रयोग असफल होते हैं, उनकी फिक्र कौन करता है ? अमेरिकन सरकार या ईसाइयत या कोई भी उस प्रयोग में क्यों उत्सुक हो, जो असफल हो गया ? वह नितांत सफल रहा है। यह बात उनकी समझ के बाहर थी। उसकी सफलता ही उनकी समस्या थी। हमें जो भी करना था, हमने कर लिया। पांच हजार युवा लोगों का एक छोटा-सा कम्यून आज तक के इतिहास में, जगत की सबसे बड़ी ताकत से संघर्ष करते हुए, पांच साल तक कम्यून को निर्मित करता रहा। और वह कम्यून ऐसे रेगिस्तान में निर्मित किया गया था, जिसका कभी उपयोग नहीं किया गया था जिसे कभी उर्वरित नहीं बनाया गया या, जिसने कभी फूल नहीं देखे थे और न कभी एक भी पक्षी देखा था। पांच साल के भीतर वह एक मरुद्यान बन गया। हमने पांच हजार लोगों के लिए खुद मकान बनाए जिसमें सब आधुनिक सुविधा थी। हमने जो सड़कें बनायीं, वे किसी भी सरकारी सड़कों से बेहतर थीं - इसमें अमेरिका भी शामिल है। 

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ओशो शब्दों के सम्राट हैं

पहली बात तो ओशो एक विचारक हैं, महान विचारक। जो किसी धर्म से नहीं विचारों से जुड़ा रहा। विचारों से जुड़ने का मतलब है सत्य से जुड़ना। जो सत्य से जुड़ता है सब उसके दुश्मन हो जाते हैं, यही कारण था कि ओशो के इतने दुश्मन पैदा हुए। ओशो के साथ बस एक दिक्कत रही कि 99 प्रतिशत वह लोग उनके खिलाफ रहे जिन्होंने उन्हें न कभी सुना है, न ही कभी पढ़ा है।

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अद्भुत बौद्धिक क्षमता से युक्त व्यक्ति

मेरी दृष्टि में ओशो अपने समय के सबसे ज्यादा बौद्धिक क्षमता से युक्त व्यक्ति थे जिनमें ज्ञान और विज्ञान को अपने तर्कों के माध्यम से प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता थी। आप उनसे सहमत हो या न हो वो अलग बात है। मेरी नजर में उन जैसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है।

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काल की शिला पर अमिट हस्ताक्षर हैं ओशो

जब हम किसी भी व्यक्तित्व के बारे में सोचते हैं तो विचारों में सबसे पहले उसकी आकृति उभरती है। ऐसे ही ओशो के बारे में सोचते ही एक चित्र उभरता है, ओशो की घनी दाढ़ी, उन्नत भाल, समुद्र सी गहराई और बाज-सी तीक्ष्ण दृष्टि वाला उनका व्यक्तित्व एक ऐसा आभा मंडल रचता है, कि हम जैसे लोग जिन्होंने उन्हें सिर्फ फोटो में देखा है, उन्हें पढ़ने या सुनने के लिए विवश हो जाते हैं। ओशो की आवाज, वाणी, उनके शब्द, भाषा शैली, अभिव्यक्ति एवं वक्तव्य की बात करूं तो वह अद्वितीय है।

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वास्तु उपायों से बनाएं नववर्ष को मंगलमय

नया साल अपने साथ खुशियां और सौहार्द लेकर आता है। ऐसे में पूरे वर्ष को और भी ज्यादा खास बनाने के लिए वास्तु संबंधित कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं। इससे घर की परेशानियां दूर होने के साथ आर्थिक तंगी से भी छुटकारा मिलेगा।

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बुद्ध के गुणों का पावन संदेश

जोव्यक्ति बुद्ध होता है, वह सम्यक संबोधि हासिल कर लेता है, वह अनन्त गुणों से भर जाता है। उसके गुणों का ध्यान करते-करते धर्म उजागर होने लगता है। ऐसे में बुद्ध के गुणों का वर्णन करने वाले एक-एक शब्द को समझना आवश्यक है। जो इस प्रकार है-

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इस सदी का चमत्कार हैं ओशो

ओशो से मेरा परिचय धर्मयुग के कारण हुआ उसमें उनके लेख, साक्षात्कार छपते थे। और मेरे कॉर्टून जिसमें मेरा डब्बू जी के नाम से एक कॉलम आता था, जिसे ओशो बहुत पसंद करते थे, यहां तक कि वह अपने प्रवचनों के बीच संन्यासियों को हंसाने के लिए उस पत्रिका को हाथ में लेते और कहते 'देखते हैं इस हफ्ते डब्बू जी क्या कहते हैं' और सबको उसमें से कोई लतीफा सुनाते थे। मैंने ओशो को खूब पढ़ा है। मैं उनके प्रवचनों से बहुत प्रभावित रहा हूं।

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सर्दियों में बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के अचूक उपाय

सर्दियों के दस्तक देते ही सर्द हवाओं का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो आगे चलकर बच्चों में सर्दी और खांसी की वजह साबित होता है। ऐसे में अगर बात बच्चों की सेहत की करें तो उनका ख्याल रखना बेहद जरूरी हो जाता है।

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सर्दी-खांसी से बचे रहना चाहते हैं तो जरूर खाएं ये सुपरफूड्स

बदलते मौसम में अक्सर इम्युनिटी कमजोर हो जाती है इसलिए इस दौरान ऐसा आहार लेना चाहिए जो आपको भीतर से मजबूत बनाए। चलिए जानते हैं कि सर्दियों में क्या खाएं कि शरीर को शक्ति और ऊर्जा दोनों मिले।

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बात जो जरूरी है वो जरा अधूरी है

दूसरे ही पृष्ठ पर सर्वप्रथम मेरा चेहरा देखकर आपका हैरान होना लाजमी है क्योंकि मेरा चेहरा इस विशेषांक के साथ न तो निर्णय करता है, न ही कोई तालमेल बिठाता है। क्योंकि न तो मैं कोई प्रसिद्ध हस्ती हूं न ही बुद्धिजीवियों की श्रेणी में मेरा कहीं कोई स्थान है। तो क्या मैं पत्रिका का संपादक होने के नाते पद और पन्नों का फायदा उठा रहा हूं? नहीं। न तो ऐसी मेरी कोई मंशा है, न ही कोई चाल। सच कहूं तो यह मेरी मजबूरी है। पर मेरी इस मजबूरी का संबंध किसी लाचारी या असहाय जैसी नकारात्मक अवस्था से नहीं है। मेरे लिए मजबूरी का मतलब उस विवशता से है जिसके लिए मेरा लिखना ही एक मात्र विकल्प है और यही विकल्प इस अंक का कई हद तक आधार भी है।

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ओशो अस्तित्व की एक अभिव्यक्ति हैं

ओशो से मिलना एक ही शर्त पर होगा- आईना हो जाओ।

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