चौंको मत, हैरान मत होओ। मैंने यह शीषर्क तुम्हें चौकाने और जगाने के लिए चुना है। क्योंकि यही मेरा ढंग है। सुनना चाहते हो तो सुनो। समझना चाहते हो तो सुनो, वरना तुम चाहो इस उलझन में भी पड़े रह सकते हो कि मैं कहां से बोल रहा हूं, क्यों बोल रहा हूं? हां, जो मैं बोल रहा हूं वो तुम्हें मेरी 650 पुस्तकों में नहीं मिलेगा। इसलिए इस बात की भी फिक्र मत करो कि यह सब कैसे और कहां से आया। मेरे लोगों के लिए यह बात काफी है कि 'मैं बोल रहा हूं।' किसके मुख से, किस माध्यम से बोल रहा हूं यह बात गौण है, और मायने भी नहीं रखती। फिर नाहक फिक्र क्यों करनी।
गाना यदि मधुर व प्रीतिकर हो तो तुम यह नहीं सोचते कि रेडियो किस कंपनी का है, मॉडल या ब्रांड कौन सा है? तुम सुनते हो, सुनने का आनंद लेते हो। लता मंगेशकर की आवाज किसी रेडियो से आए या टी.वी. से, सी.डी. के माध्यम से आए या पैन ड्राइव से, तुम उस यंत्र को, उस डब्बे को या उस डिवाइस को लता मंगेशकर तो कहने नहीं लगते ? तुम संगीत सुनते हो, गुन गुनाते हो, डूबते हो और अधिक हुआ तो गीत के साथ-साथ अपनी यादों में डूब कर सुकून से भर जाते हो। पर उस डिब्बे की फिक्र नहीं करते, कि वह डिब्बा प्लास्टिक का है या लोहे का, नया है या पुराना। इसे ऐसे समझो, कि तुम अपने टी.वी. या कंप्यूटर पर हिमालय की तस्वीर देखो। तो क्या तुम अपने टी.वी. को हिमालय समझ लेते हो? नहीं। जिस तरह टी.वी. पर हिमालय की तस्वीर के कारण टी.वी. हिमालय नहीं हो जाता, रेडियो पर लता की आवाज के कारण रेडियो लता मंगेशकर नहीं हो जाता पर दोनों फिर भी हम तक पहुंचते हैं। ऐसे ही इसी बात को समझो। इस बेचैनी में मत घिरो कि मैं किसके जरिए, किस माध्यम से बोल रहा हूं। सुन सको तो सुनो।
Diese Geschichte stammt aus der December 2022-Ausgabe von Sadhana Path.
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