'जैसा खाये अन्न वैसा बने मन' वाली उक्ति बहुत ही सारगर्भित है। इसी वजह से हमारे शास्त्रकारों एवं उपनिषद्कारों के मतानुसार मन को सात्विक बनाना आत्मोत्कर्ष की दृष्टि से नितान्त आवश्यक है और उसके लिए आहार शुद्धि को प्रथम चरण माना गया है। हम सभी इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि हमारे जीवन में आहार का प्रभाव व्यापक है। यह ऐसी सच्चाई है, जिसका अनुभव हमारे ऋषियों और शरीर शास्त्रियों के साथ-साथ हम सभी ने अपने जीवन में कई बार किया है।
इसी अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आहार में न केवल रस-रक्त निर्माण करने की क्षमता हैं, बल्कि यह हमारे चिन्तन के स्तर को भी प्रभावित करता है। इन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए विद्वानों एवं चिकित्सकों ने सात्विक आहार लेने पर सदैव जोर दिया है क्योंकि शुद्ध, सात्विक एवं प्राकृतिक आहार केवल शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, किन्तु मन को भी शांत एवं स्थिर बनाता है। यह अन्तःकरण को भी पवित्र बनाता है।
तीन तरह के आहार
आमतौर पर आहार को सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी इन तीन श्रेणियों के अंतर्गत माना जाता है-
Bu hikaye Grehlakshmi dergisinin January 2023 sayısından alınmıştır.
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