खुदीराम बोस का पराक्रम
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|December 2022
खुदीराम का जन्म ३ दिसम्बर, १८८६ को मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था।
हितेन्द्र पटेल
खुदीराम बोस का पराक्रम

उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बसु नराजोल इस्टेट के तहसीलदार थे। कहा जाता है कि जब लक्ष्मीप्रिया देवी को कोई पुत्र न हुआ तो उन्होंने अपने घर के सामने की सिद्धेश्वरी काली मन्दिर में तीन दिनों तक लगातार पूजन किया। तीसरी रात को काली माता ने उन्हें दर्शन देकर पुत्ररत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद तो दिया लेकिन यह भी कहा कि यह पुत्र बहुत यशस्वी तो होगा लेकिन अधिक दिन जीवित नहीं रहेगा। उन दिनों के परम्परा के अनुसार नवजात शिशु का जन्म होने के बाद उसकी सुरक्षा के लिए कोई उसे खरीद लेता था। लक्ष्मीप्रिया देवी के पुत्र के जन्म के बाद उसे तीन मुट्ठी खुदी (चावल) देकर उसकी दीदी ने खरीद लिया जिसके कारण उसका नाम पड़ा - खुदीराम।

बालक खुदीराम को माता-पिता का प्रेम अधिक दिनों तक नहीं मिल सका। मात्र ६ वर्ष की अवस्था में पहले माँ और फिर पिता चल बसे । दीदी अपरूपा देवी का विवाह हो चुका था लेकिन उसे ही नन्हें खुदीराम का दायित्व लेना पड़ा। अब खुदीराम दीदी और उसके परिवार के साथ रहने लगे। दीदी का एक लड़का खुदीराम की ही आयु का था। दोनों साथ ही तमलुक शहर के हेमिल्टन स्कूल में पढ़ने लगे। तब तक खुदीराम १२ वर्ष के हो चुके थे। स्कूल में खुदीराम का अधिक मन नहीं लगता था । वे कुछ विशेष किस्म के किशोर थे। स्कूल में वे एक ऐसे छात्र के रूप में जाने जाते थे जिसे किसी भी तरह के कष्ट को सहन करने की क्षमता थी और जो किसी से भी नहीं डरता था। उनके स्कूली जीवन के बारे में दो तीन कहानियां बहुत प्रसिद्ध हैं जिसके बारे में उन लेखकों ने लिखा है जो उनके साथ स्कूल में पढ़ते थे।

एक बार वे एक ऊँचे पेड़ से जमीन पर कूदे और उन्हें बहुत चोट लगी और कपड़े भी बुरी तरह से फट गए। लेकिन जब उसी समय उनके शिक्षक आ गए तो अपने दुःख और पीड़ा को भीतर ही भीतर पीते हुए खुदीराम ने ऐसा दिखाया मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो। सभी लड़के अवाक! खुदीराम सांप से बिल्कुल ही नहीं डरते थे और कई बार सांप को पकड़कर, थोड़ी देर खेल करके वे उसे छोड़ दिया करते थे। ऐसे साहसी लड़के को उनके साथ पढ़नेवाले लड़के क्यों न सराहते भला?

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