धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में भक्ति या नायकपूजा पतन का निश्चित रास्ता है जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है. - डाक्टर भीमराव आंबेडकर द्वारा 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का अंश.
आगे इसी भाषण में उन्होंने यह कहते आगाह किया था कि आम लोग किसी भी राजनेता के प्रति अंधश्रद्धा न रखें वरना इस की कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी. दूसरे देशों की तुलना में भारतीयों को इस से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. भारत की राजनीति में भक्ति या आत्मसमर्पण या नायकपूजा दूसरे देशों की तुलना में बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाती है.
यह वह समय था जब आम लोगों में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति अंधभक्ति किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी. अंधभक्ति आज भी है, बस, उस की वजह और चेहरा बदल गए हैं. 11 अक्तूबर के तमाम दैनिक अखबारों में 2 पृष्ठों का एक सरकारी में विज्ञापन छपा था जिस का टाइटल थाश्री महाकाल लोक उज्जैन. बैकग्राउंड में मंदिर की तसवीर के साथसाथ विज्ञापन के नीचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाथ जोड़े भक्तिमुद्रा में तसवीरें थीं.
इस विज्ञापन की सब से ज्यादा आकर्षक लेकिन चिंताजनक बात श्री महाकाल लोक प्रोजैक्ट की लागत का 2- 4 करोड़ नहीं, बल्कि 856 करोड़ होनी थी जिस में से कोई 250 करोड़ 11 अक्तूबर के जलसे के प्रचारप्रसार में ही खर्च किए गए या बेरहमी से फूंके गए एक ही बात है.
चूंकि सभी अखबारों, न्यूज चैनल्स और दूसरे मीडिया माध्यमों को उन की हैसियत के हिसाब से शंकर का प्रसाद मिला था, इसलिए सभी ने फुरती से अपनी ड्यूटी बजाते इस दिन को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
दिनभर मीडिया पर महाकाल लोक का सीधाउलटा प्रसारण होता रहा जिस में गिनाने को सरकारों का भक्तिप्रेम और एक अलौकिक काल्पनिक संसार था. इस जलसे का लाइव प्रसारण हुआ जिसे 40 देशों के श्रद्धालुओं ने देखा. इस के बाद भाट गिरी और शिव पुराण शुरू हो गए कि श्री महाकाल लोक में भगवान शंकर के विविध रूप देखने को मिलेंगे.
Bu hikaye Sarita dergisinin November Second 2022 sayısından alınmıştır.
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