मौका था महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवाड़ में नई कोर्ट बिल्डिंग के भूमिपूजन समारोह का जिस में जस्टिस अभय ओक और जस्टिस भूषण आर गवई भी आमंत्रित थे. आयोजन में इलाके के गणमान्य नागरिक और वकील भी मौजूद थे. जैसे ही जस्टिस अभय ओक के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा, “संविधान को अपनाए हुए 75 साल पूरे हो चुके हैं, इसलिए हमें सम्मान दिखाने और इस के मूल्यों को अपनाने के लिए इस प्रथा की शुरुआत करनी चाहिए. इस साल 26 नवंबर को हम बाबासाहब अंबेडकर के जरिए दिए गए संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे करेंगे.
"मुझे हमेशा से लगता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में 2 बेहद जरूरी शब्द हैं. एक धर्मनिरपेक्ष और दूसरा लोकतंत्र. कुछ लोग कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व धर्म समभाव है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि यह न्यायिक प्रणाली का मूल संविधान है. इसलिए कई बार जजों को भी अप्रिय बातें कहनी पड़ती हैं. मैं कहना चाहता हूं कि अब हमें न्यायपालिका से जुड़े हुए किसी भी कार्यक्रम के दौरान पूजापाठ या दीप जलाने जैसे अनुष्ठानों को बंद करना होगा. इस के बजाय हमें संविधान की प्रस्तावना रखनी चाहिए और किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने के लिए उस के सामने झुकना चाहिए."
अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि, "कर्नाटक में अपने कार्यकाल के दौरान मैं ने ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों को रोकने की कोशिश की थी परंतु मैं इसे पूरी तरह से रोक नहीं पाया था लेकिन कम करने में जरूर कामयाब रहा था."
कर्नाटक में जन्मे 64 वर्षीय जस्टिस अभय ओक के पास अदालतों का लंबा तजरबा है. अदालती कामकाज को ले कर उन्होंने कई अहम बयान भी वक्तवक्त पर दिए हैं. अपनी बेबाक बयानी के लिए पहचाने जाने वाले न्यायमूर्ति ने कुछ दिनों पहले यह भी कहा था कि न्यायपालिका में आम आदमी का भरोसा काफी कम हो गया है.
अदालत के बाहर किसी प्रोग्राम में ही नहीं बल्कि अदालत में भी सटीक फैसले देने के लिए भी विख्यात जस्टिस अभय ओक ने एक अहम फैसले में बीती 4 मार्च को यह कहा था कि जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की आलोचना और पाकिस्तान को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देना अपराध नहीं माना जा सकता. इस फैसले में उन की बैंच में जस्टिस उज्ज्वल भुइया भी थे.
Bu hikaye Sarita dergisinin April First 2024 sayısından alınmıştır.
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