![डिजिटलीकरण के दौर में गायब हुए नुक्कड़ नाटक](https://cdn.magzter.com/1338807038/1716362933/articles/YwiB6hDZ71716373227903/1716373428708.jpg)
साल 1989 का पहला दिन था. तब एकदूसरे को हैप्पी न्यू ईयर के व्हाट्सऐप फौरवर्ड भेजने का रिवाज नहीं था. न ही इंस्टाग्राम पर रंगबिरंगी लाइटें लगाने व तंग कपड़े पहन कर रील बनाई जाती थीं. ट्विटर पर हैशटैग जैसी फैंसी चीज नहीं थी. इन बड़े सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों के न होने के चलते युवाओं के पास खुद को एक्सप्रैस करने के लिए नुक्कड़ नाटक थे. यानी, स्ट्रीट प्ले सोशल इंटरैक्शन के माध्यम माने जाते थे. नाटक करने वालों के पास कला थी और देखने वालों के पास तालियां यही उस समय का यूथ कोलैब हुआ करता था.
यही तालियों की गड़गड़ाहट साल के पहले दिन गाजियाबाद के अंबेडकर पार्क के नजदीक सड़क पर बज रही थी उस के लिए जो आने वाले सालों में इम्तिहान के पन्नों में अमर होने वाला था, जिस के जन्मदिवस, 12 अप्रैल, को 'नुक्कड़ नाटक दिवस' घोषित किया जाने वाला था. बात यहां मार्क्सवाद की तरफ झुकाव रखने वाले सफदर हाशमी की है जो महज 34 साल जी पाए और इतनी कम उम्र में वे 24 अलगअलग नाटकों का 4,000 बार मंचन कर चुके थे.
शहर में म्युनिसिपल चुनाव चल रहे थे. 'जन नाट्य मंच' (जनम) सीपीआईएम कैंडिडेट रामानंद झा के समर्थन में स्ट्रीट प्ले कर रहा था. प्ले का नाम 'हल्ला बोल' था. सुबह के 11 बज रहे थे. तकरीबन 13 मिनट का नाटक अपने 10वें मिनट पर था. तभी वहां भारी दलबल के साथ मुकेश शर्मा की एंट्री हो जाती है. वह मुकेश शर्मा जो कांग्रेस के समर्थन से इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ रहे थे. मुकेश शर्मा ने प्ले रोक कर रास्ता देने को कहा. सफदर ने कहा, 'या तो प्ले खत्म होने का इंतजार करें या किसी और रास्ते पर निकल जाएं.'
बात मुकेश शर्मा के अहं पर लग गई. उस के गुंडों की गुंडई जाग गई. उन लोगों ने नाटक मंडली पर रौड और दूसरे हथियारों से हमला कर दिया. राम बहादुर नाम के एक नेपाली मूल के मजदूर की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. सफदर को गंभीर चोटें आईं. अस्पताल ले तो जाया गया पर दूसरे दिन सुबह तकरीबन 10 बजे, भारत के जन-कला आंदोलन के अगुआ सफदर हाशमी ने अंतिम सांस ली.
Bu hikaye Mukta dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.
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![वायरल रील्स](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/870/1707705/01uDcMhnL1716375077476/1716375304879.jpg)
वायरल रील्स
सोशल मीडिया पर कुछ न कुछ नया ट्रैंड होता रहता है. ऐसे कई लोग हैं जो अपनी हरकतों से वायरल हो जाते हैं.
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आयुषी खुराना - हौट लुक के सहारे
अभिनेत्री आयुषी खुराना बचपन से नृत्यकला से जुड़ी रही हैं. हालांकि वे शुरू में कोरियोग्राफी करने की इच्छा रखती थीं लेकिन जीवन ने उन के लिए अलग योजनाएं बनाईं, जिस से वे एक अभिनेत्री बन गईं.
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इन्फ्लुएंसर्स करते पौयजनस फूड का प्रचार लोग होते बीमार
सोशल मीडिया पर ऐसे फूड व्लौगर धड़ल्ले से आ गए हैं जो व्यूज पाने के लिए जहांतहां कैमरा उठा कर निकल पड़ते हैं और ऐसे खाने के रैस्टोरैंटों, दुकानों, गुमटियों को ढूंढ़ते हैं जो अपने खाने में अजीबोगरीब एक्सपैरिमैंट करते हों.
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नोरा फतेही - आइटम डांस गर्ल का ग्लैम कब तक
नोरा फतेही का कैरियर अभी तक अपने डांस और आइटम नंबरों पर ही बेस्ड रहा है. ऐक्टिंग में उन्हें सीमित भूमिकाएं ही मिली हैं. ऐक्टिंग के लिए उन्हें रखा भी नहीं जाता. शो पीस जैसी दिखाई देती हैं वे. लुक्स और ग्लैमर पर निर्भर उन का कैरियर बौलीवुड में अपने पैर नहीं जमा सकता.
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सोशल मीडिया में धर्मप्रचारकों के टारगेट में युवतियां
सोशल मीडिया पर धर्मप्रचारकों व कथावाचकों की रील्स खूब ठेली व देखी जाती हैं. इन कथावाचकों की अधिकतर टिप्पणियां युवतियों व महिलाओं पर होती हैं. यह नैतिक शिक्षा के नाम पर समाज को सैकड़ों साल पीछे धकेलने की साजिश है.
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प्रोजैक्टर्स पढ़ाई और काम के लिए
प्रोजैक्टर एक छोटी सी डिवाइस है जिस की हैल्प से आप परदे की एक बड़ी स्क्रीन तैयार कर सकते हैं. प्रोजैक्टर हाई रिजोल्यूशन पिक्चर क्वालिटी देता है. इस का इस्तेमाल करना बड़ी आसानी से सीखा जा सकता है. कोई भी इस का इस्तेमाल घर या औफिस और क्लास में आसानी से कर सकता है. बाजार में ये हर क्वालिटी और कीमत में मौजूद हैं जिन्हें आप अपनी सहूलियत के अनुसार खरीद सकते हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रोजैक्टर्स के बारे में जो बाजार में मौजूद हैं.
![डिजिटलीकरण के दौर में गायब हुए नुक्कड़ नाटक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/870/1707705/YwiB6hDZ71716373227903/1716373428708.jpg)
डिजिटलीकरण के दौर में गायब हुए नुक्कड़ नाटक
एनएसडी और एफटीआईआई जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र भी अब बड़ेबड़े घरानों से आने लगे हैं. यहां सरकार का दखल भी बढ़ गया है. छात्र अब नुक्कड़ नाटकों में दिलचस्पी नहीं दिखाते.
![क्यों हाइप पर हैं एंटीएस्टैब्लिशमेंट कंटैंट क्रिएटर्स](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/870/1707705/ft2Xmb7cS1716372983623/1716373226448.jpg)
क्यों हाइप पर हैं एंटीएस्टैब्लिशमेंट कंटैंट क्रिएटर्स
सोशल मीडिया पर सरकार का समर्थन करने वाले क्रिएटर्स से अधिक वे क्रिएटर्स देखे जा रहे हैं जो या तो सरकार की नीति का खुल कर विरोध कर रहे हैं या बैलेंस्ड कंटैंट दे रहे हैं. ध्रुव राठी, रवीश कुमार, आकाश बनर्जी, श्याम मीरा ऐसे तमाम नाम हैं जिन की व्यूअरशिप काफी है.