वैवस्वत मनु ने सरयू नदी के तट पर सौ वर्ष तक तप किया। एक पाटीय तपस्या से उन्हें इक्ष्वाकु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम विकुक्षि था। सौ वर्ष तक तपस्या करने पर वह स्वर्ग लोक चला गया। उसके पुत्र का नाम रिपुंजय था। रिपुंजय के पुत्र का नाम कुकुत्क्षथ बताया गया है। उसका पुत्र अनेनौस तथा उसके पुत्र का नाम पृथु था। इसी क्रम से अगले राजाओं तथा उनके पुत्रों में बिम्बगशय, अर्दनाम भद्राख युवननाश्व, सत्वपाद, श्रवस्थ वृहदस्व, कुवलयावश्यक, भिकुम्भक, संकटाश्व, प्रसेनजिनु, तद्रवाणाश्व, मान्यता, पुरुकुत्स चिशतश्व, अनरणय के नाम उल्लेखनीय हैं।
अनरण्य सतयुग के द्वितीय चरण का राजा बताया है। इसने अट्ठाईस सहस्र वर्ष तक राज्य किया था। इसके पश्चात पृषदश्व, हर्तश्व, वासुमान तथा तात्विधन्वा के नाम बताए गए हैं।
द्वितीय पाद की समाप्ति पर त्रिघन्वा, त्रयारणय, त्रिशंकु, रोहित, हवरीत, जंचुभुप, विजय, तद्ररूक तथा उसका पुत्र सगर बताए गए हैं।
वैवस्वत आदि राजाओं के काल में व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान दिया गया और उस काल में मणि, स्वर्ण आदि की स्मृद्धि थी। सत्युग के तृतीय चरण के मध्य में सगर नामक राजा हुआ था। वह शिव का परम भक्त था तथा सदाचार वाला था। उस सगर राजा के पुत्रों को सागर कहा जाने लगा। सागरों के नष्ट हो जाने पर असंजस ने राज्य किया। उनके पुत्र का नाम अंशुमान था। इसके पुत्र का नाम दिलीप था।
इसके बाद भगीरथ, श्रुतसेन, नाभाग, अम्बरीश आदि के नाम वर्णित हैं।
Bu hikaye Sadhana Path dergisinin February 2024 sayısından alınmıştır.
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