सुख और ऐश्वर्य की जिंदगी जीने वाले मगर लंबे समय से सीखचों में बंद राघव मगुंटा रेड्डी के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह अगर सुकून की जिंदगी जीना चाहता है तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर अपना संपूर्ण बोझ डाल दे.
वह दुविधा में था कि क्या करे, क्या अपनी रक्षासुरक्षा के लिए किसी का नाम ले या फिर दुखदर्द और तकलीफ को सहता रहे.
आखिरकार उस ने निश्चय किया कि सुख की जिंदगी जीने के लिए उसे शराब घोटाले में 100 करोड़ रुपए देने का आरोप चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए. जांच अधिकारी ने राघव को समझाते हुए कहा, "चाहे तुम कितने ही बड़े आदमी हो, कानून और सरकार से ऊपर न तो हो सकते हो और न ही इस के बारे सोचो. इसलिए तुम्हारे हित में कहा जा रहा है, हम जो कह रहे हैं, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो उसी में तुम्हारा भला है और भविष्य भी उज्जवल..."
प्रवर्तन निदेशालय के कुछ अधिकारियों के सामने पूछताछ के दरमियान राघव मगुंटा रेड्डी असहाय हो चुका था. कई दिनों से उस से पूछताछ चल रही थी और अधिकारी बारबार एक ही बात कह रहे थे कि आंख बंद कर के चुपचाप स्वीकार कर लो हम जो कह रहे हैं.
"देखो, शराब का जो गड़बड़झाला हुआ है, उस का एकएक सच हमारे सामने है. हम से कुछ भी तो छिपा हुआ नहीं है. मगर तुम यह समझते हो कि हम से कुछ छिपाओगे तो तुम बच नहीं सकते."
"मगर, मैं ने तो हर एक सच आप को बारबार अपने बयानों में बताया है. आप तो इसे स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं. क्या आप यह चाहते हैं कि आप जो कहें, वह मैं स्वीकार कर लूं? जो हुआ ही नहीं वह भी स्वीकार कर लूं? अगर ऐसा है तो ठीक है बताइए मुझे क्या बयान देना है, मैं तैयार हूं.
असहाय हो चुके राघव मगुंटा रेड्डी ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया था.
.... और इस तरह प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने दिल्ली शराब घोटाले में मानो एक 'और विकेट गिरा दिया. इस के साथ ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के गिरेबान में हाथ डालने के लिए उन के पास अब पर्याप्त सबूत था.
Bu hikaye Manohar Kahaniyan dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.
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