जब दोनों बच्चे कोरियर ले रहे थे तभी पड़ोस में रहने वाले दिनेश अंकल अपने घर से बाहर आए, “बच्चो, तुम्हारा कोरियर आया है ?” उन्होंने पूछा.
“हां,” बच्चे खुशी से चहकते हुए बोले.
“यह तो बहुत अच्छा हुआ. मेरा भी कोरियर आने वाला है, मैं उसी का इंतजार कर रहा हूं."
“खुश तो ऐसे हो रहे हैं जैसे इन्हीं का कोरिय आया हो,” निधि अंदर जाते हुए बोली.
"पहली बार मेरे नाम का कोरियर आया है, वह भी इतना बड़ा और भारी बौक्स,” चिराग खुश होता हुआ बोला.
“किस ने भेजा है?" निधि जानना चाहती थी.
चिराग ने बौक्स को चारों ओर से देखते रों ओर से देखते हुए कहा, “पता नहीं, किसी का नाम नहीं लिखा है, बस, एक फोन नंबर है, पर जयपुर से आया है."
“मैं हैरान हूं कि इस में क्या होगा?” निधि जानने को उत्सुक थी.
“खोल कर देखते हैं," कह कर चिराग ने जल्दी से बौक्स खोल डाला. अंदर एक कहानी की किताब थी.
“कमाल है, इतनी छोटी किताब भेजने के लिए इतना बड़ा बौक्स और जयपुर में तो हमारी जान पहचान का कोई रहता भी नहीं है,” चिराग बोला.
“भैया, तुम्हारा जन्मदिन आने वाला है न, इसीलिए किसी ने तुम्हें सरप्राइज देने के लिए अपना नहीं लिखा होगा,” निधि ने अनुमान लगाया.
“नाम न सही फोन नंबर तो है, इस पर फोन करते हैं," कह कर चिराग ने फोन मिलाया.
“यह तो रौंग नंबर है," चिराग ने बताया.
इस के बाद उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों व दोस्तों को फोन कर के पूछा पर किसी ने भी किताब नहीं भेजी थी.
“छोड़ो, हमें क्या जिस ने भी भेजा होगा बाद में पता चल ही जाएगा.
“मुझे बौक्स फेंकने दो,” चिराग ने उसे उठाते हुए कहा, लेकिन बौक्स उस के हाथ से छूट गया.
“निधि, देख ये बौक्स खाली है फिर भी भारी लग रहा है." निधि ने भी बौक्स उठा कर देखा, "हां, है तो भारी, अभी नहीं फेंकते हैं, इसे शाम को हम मम्मी पापा को दिखाएंगे."
शाम को जैसे ही मम्मीपापा औफिस से आए. पापा मीटिंग में चले गए और मम्मी के फोन पर मौसी का फोन आ गया.
Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin December First 2023 sayısından alınmıştır.
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