लद्दाख में आंच
India Today Hindi|February 28, 2024
यह मसला लोकसभा चुनाव में भी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है और भाजपा की चुनावी संभावना में उलटफेर कर सकता है. विपक्ष भी उसके खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार देने की कोशिश कर रहा है
मोअज्जम मोहम्मद
लद्दाख में आंच

करगिल में पिछले साल अक्तूबर में हुए लद्दाख स्वायत्तशासी पर्वतीय विकास परिषद के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस गठजोड़ की जोरदार जीत ने यह संकेत दिया था कि स्थानीय भावनाओं में भारी बदलाव आया है. एकदम स्थानीय स्तर के चुनाव में इस जीत को केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ गुस्से पर मुहर के तौर पर देखा गया, खासतौर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यह हार उस समय हुई जब भगवा पार्टी इस इलाके में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है और जिसे कई विकास कार्य कराने का श्रेय है. इनमें लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने की लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी करना भी शामिल है.

करीब छह महीने बाद यह क्षेत्र लोकसभा चुनाव से पहले फिर से असंतोष का सामना कर रहा है. 3 फरवरी को जमा देने वाली सर्दी के दिन लेह में एनडीएस स्टेडियम से लेकर पोलो ग्राउंड की सुनसान सड़कों पर विशाल विरोध प्रदर्शन निकाला गया, जिसमें शामिल लोगों ने अपनी मांगों को नए सिरे से उठाया. दूरदराज के गांवों से आए लोग भी इसमें शामिल हुए और लेह पूरी तरह बंद रहा. उनकी मांगें पांच मसलों को लेकर हैं - राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, स्थानीय युवाओं की भर्ती और नौकरियों में आरक्षण, लोक सेवा आयोग का गठन और राज्य से संसदीय सीटों की संख्या एक से बढ़ाकर दो करना.

लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के नेतृत्व में इस विरोध प्रदर्शन को भाजपा को छोड़कर अन्य सभी दलों का समर्थन मिला ऐतिहासिक रूप से देखें तो लद्दाख के दो जिलों-बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल करगिल का ज्यादातर मसलों पर राजनैतिक और विचारधारा के तौर पर अलग-अलग नजरिया है. फिर भी दोनों जिलों के सभी धार्मिक और राजनैतिक दलों ने साथ जुटकर एक गठजोड़ बनाया और अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए शपथ ली.

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