परिवारवाद की राजनीति नफा कम नुकसान ज्यादा
DASTAKTIMES|July 2022
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र मोह ने सेना को 'चौराहे पर खड़ा कर दिया है। उद्धव को अपना सियासी अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है। उद्धव के पुत्र मोह के चलते उनके सबसे वफादार नेता एकनाथ शिंदे और करीब 38 अन्य विधायकों ने पार्टी से नाता तोड़कर न केवल अपना अलग गुट बना लिया, बल्कि उद्धव ठाकरे से सत्ता छीन कर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री भी बन गए हैं।
संजय सक्सेना
परिवारवाद की राजनीति नफा कम नुकसान ज्यादा

महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के खेल ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राजनीति में पुत्र मोह की कोई जग नहीं होनी चाहिए। इससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है। इसके कई उदाहरण देश में मौजूद हैं। पुत्र मोह के चलते हिन्दू हृदय सम्राट बाला साहब ठाकरे ने अपने भतीजे और उनके (बाला साहब) सियासी उत्तराधिकारी समझे जाने वाले राज ठाकरे की जगह अपने बेटे उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान सौंप दी थी, जबकि उद्धव की राजनीति में कोई रुचि नहीं थी। वह वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर थे और उसी में खुश नजर आते थे, जबकि बाला साहब के भतीजे राज ठाकरे सियासत में रुचि रखते थे। इस बात का आभास बाला साहब को था भी, लेकिन चाचा बाला साहब के पुत्र मोह में भतीजे राज ठाकरे सियासी ठगी का शिकार हो गए। पुत्र मोह के चलते ही एक बार फिर से शिवसेना का अस्तित्व संकट में आ गया है। अबकी बार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र मोह ने सेना को 'चौराहे' पर खड़ा कर दिया है। उद्धव को अपना सियासी अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया है। उद्धव के पुत्र मोह के चलते उनके सबसे वफादार नेता एकनाथ शिंदे और करीब 38 अन्य विधायकों 'पार्टी से नाता तोड़कर न केवल अपना अलग गुट बना लिया, बल्कि उद्धव ठाकरे से सत्ता छीन कर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री भी बन गए हैं।

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केन्द्र में मोदी को शीर्ष तक पहुंचाने में ओबीसी की बड़ी भूमिका रही है। राज्यों में मुलायम, लालू एवं नीतीश की राजनीति भी ओबीसी की फैक्ट्री से ही निकली। आज भी कई राज्यों में राजनीतिक दलों का भविष्य ओबीसी वोटरों के मूड पर निर्भर करता है। यह तब है जबकि चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जो बता सके कि किस वर्ग ने किस दल को वोट किया।

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