इस बात से राजी होना मुश्किल नहीं है कि बच्चे पैदा कर देने से ही कोई माता-पिता नहीं बनता। तन से ज्यादा यह मन से जुड़ा मसला है। हालांकि बीते सालों में भारत समेत दुनिया भर में बच्चों को गोद लिए जाने के आंकड़े बढ़ रहे हैं। फिर भी भारतीय समाज में बच्चे को गोद लेना अभी भी आम बात नहीं है। सुष्मिता सेन, सनी लियोनी, दिबाकर बैनर्जी, कुणाल कोहली समेत कई भारतीय सेलिब्रिटीज का बच्चों को गोद लेना, उस पर खुलकर बातें करना, धीरे-धीरे लोगों की सोच को बदल रहा है।
मिस यूनिवर्स रह चुकी सुष्मिता सेन बड़ी अच्छी बात कहती हैं। उन्होंने साल 2000 में पहली बेटी रेनी को और 2010 में दूसरी बेटी एलिसा को गोद लिया था। वह कहती हैं, 'मैंने 24 साल की उम्र में मां बनने का एक समझदारी भरा फैसला किया था। यह कोई दया या भलाई का काम नहीं था। मैंने किसी को नहीं बचाया, बल्कि खुद को बचाया था। सामान्य प्रक्रिया में बच्चे और मां का संबंध गर्भनाल से जुड़ा होता है। पर गोद लिए बच्चे से यह रिश्ता दिल से जुड़ जाता है।'
फिल्मों व टीवी में बच्चे को गोद लेने वाले दृश्य बड़े ही भावुक और खूबसूरत ढंग से फिल्माए जाते हैं। सब कुछ बहुत आसान लगता है। पर, असलियत में ऐसा नहीं होता। कई बार बच्चा मिलने में लंबा समय भी लग जाता है। भावनात्मक ऊर्जा भी काफी लगती है।
यह ध्यान रखें
संभावित माता-पिता संस्था को बच्चे के संबंध में अपनी पसंद बता सकते हैं। मसलन, वे किस उम्र, जाति या लिंग के बच्चे को गोद लेना चाहते हैं? हालांकि हर चीज मन-मुताबिक नहीं हो पाती। पेरेंट्स की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही गोद देनी वाली संस्था मौजूदा बच्चों में से बच्चा रेफर करती है। मई 2017 में इस संबंध में एक बदलाव किया गया है। पहले भारतीय अभिभावकों को तीन बच्चे एक साथ रेफर किए जाते थे, जिनमें से वे एक चुनते थे। पर अब माता-पिता को एक-एक करके ही बच्चा रेफर किया जाता है। अगर पहली बार में ही बच्चा पसंद आ जाता है तो फिर दूसरे बच्चों को रेफर नहीं किया जाता।
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट तनिमा किशोर कहती हैं, 'गोद लेने से पहले बच्चे की पूरी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में माता-पिता को बताया जाता है। पूरी जांच के बाद बच्चा सौंपा जाता है। माता-पिता गोद लेने से पहले अपनी पसंद के डॉक्टर से भी बच्चे की जांच करवा सकते हैं। इसका मकसद माता-पिता को पूरी तरह संतुष्ट करना होता है, ताकि बाद में शिकायत न रहे।'
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