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एकतरफा इतिहास का सच
DASTAKTIMES
|October 2025
इतिहास हमारे समाज का आईना होता है, इस पर भविष्य की नींव रखी जाती है... लेकिन अगर नींव मिलावटी हो तो... भारत के इतिहास खासकर मध्यकालीन इतिहास को जिस तरह तोड़-मरोड़कर, मुगल शासकों का महिमा मंडन कर स्कूल कॉलेज में सालों से पढ़ाया जाता रहा है, अब उसकी पोल खुल चुकी है। मीडिया से जुड़े सीनियर जर्नलिस्ट, विजय मनोहर तिवारी ने एक खुला खत लिखकर इरफान हबीब और रोमिला थापर से कड़े सवाल किये हैं और उनसे गलत इतिहास लिखकर लोगों को गुमराह करने को लेकर जवाब मांगा है।
आदरणीय इरफान हबीब साहब/ रोमिला थापर मैम, सादर प्रणाम। मैं साइंस का विद्यार्थी रहा हूं लेकिन बचपन से ही मेरी दिलचस्पी इतिहास में थी। सबसे पास के कॉलेज में इतिहास में एमए की व्यवस्था ही नहीं थी और मैं पढ़ाई के लिए बाहर जा नहीं सकता था, इसलिए गणित में एमएससी करके एक साल कॉलेज में पढ़ाया। फिर लिखने के शौक की वजह से मीडिया में आ गया। करीब पच्चीस बरस प्रिंट और टीवी मीडिया में काम किया। इस दरम्यान पांच साल तक लगातार आठ दफा भारत के कोने-कोने में घूमने का भी मौका मिला। इन पच्चीस-तीस सालों में इतिहास ने मेरा पीछा कभी नहीं छोड़ा। स्कूल से कॉलेज तक की अपनी पूरी पढ़ाई में मैंने जितनी किताबें नहीं पढ़ी होंगी, उतनी अकेले इतिहास की किताबें पढ़ी होंगी। खासतौर से भारत का मध्यकालीन इतिहास। भारत के 'मध्यकाल' से आप जैसे विद्वानों का आशय जो भी हो, मेरी दिलचस्पी लाहौर-दिल्ली पर तुर्कों के कब्ज़े के बाद से शुरू हुए भयावह दौर में है।
मुझे अच्छी तरह याद है कि तीस साल पहले गणित की डिग्री लेते हुए जब इतिहास की किताबों में ताकाझांकी शुरू की थी, तब इरफान हबीब और रोमिला थापर का बड़ा नाम था, उनकी बहुत इज़्ज़त थी। हमने आपको इतिहास लेखन में बहुत ऊंचे दर्जे पर देखा था। हम नहीं जानते थे कि इतिहास जैसे सच्चे और महसूस किए जाने वाले विषय में भी कोई मिलावट की गुंजाइश हो सकती है। हम सोच भी नहीं सकते थे कि इतिहास में कोई अपनी मनमर्जी कैसे डाल सकता है।
मैं बरसों तक वही पढ़ता रहा, जो आज़ादी के बाद आप जैसे मनीषियों ने स्थापित किया। सल्तनत काल और फिर मुगल काल के शानदार और बहुत विस्तार से दर्ज एक के बाद एक अध्याय। सल्तनत काल के सुल्तानों की बाज़ार नीतियां, विदेश नीतियां और फिर भारत के निर्माण में मुगलकाल के बादशाहों के महान योगदान और सब तरह की कलाओं में उनकी दिलचस्पियां वगैरह। वह कथानक बहुत ही रूमानी था। वह इन सात सौ सालों के इतिहास की एक शानदार पैकेजिंग करता था। उसी पैकेजिंग से हिंदी सिनेमा के कल्पनाशील महापुरुषों ने बड़े परदे पर 'मुगले-आजम' और 'जोधा-अकबर' के कारनामे रचे।
Dit verhaal komt uit de October 2025-editie van DASTAKTIMES.
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