अपनी माटी से नाता
Aha Zindagi
|August 2025
अक्सर ज़िंदगी की तेज़ रफ़्तार में उलझकर लोग भूल ही जाते हैं कि चले कहां से थे।
इस चमचमाते शहर, बड़ी नौकरी, और ऊंची इमारतों के बीच जब अचानक कोई पूछता है कि कहां से हो... तो यादें दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ऐसा लगता है जैसे अपनी माटी पुकार रही हो।
कई बार यूं ही चलते-चलते कुछ महक पुरानी यादों की तरह मन में घुल जाती है, जैसे धूप में पकी हुई मिट्टी की खुशबू, या किसी पेड़ के नीचे से आती पुरानी याद।
तब लगता है कि कोई जगह, कोई समय नहीं, हमारी अपनी जड़ें पुकार रही हैं। मुझे भी ये एहसास तब हुआ, जब एक लंबे समय तक लगातार काम, भाग-दौड़, और शहर की चकाचौंध में डूबी रही। लगा जैसे जीवन केवल एक्सेल शीट, मीटिंग और अलार्म क्लॉक बनकर रह गया है। पर तभी एक शाम, जब ऑफिस से लौटते हुए अचानक किसी ने फोन पर पूछा, 'अरे, तेरे शहर की वह चौक वाली दुकान अभी भी चलती है क्या?' — और मैं ठिठक गई। मैंने महसूस किया कि न जाने कब से मैं उस जगह से दूर हो गई थी, जहां मेरा मन हर सुबह खिलता था। उसी दिन, बिना ज़्यादा सोचे, बस एक टिकट कटवाया और निकल पड़ी।
बस यूं ही गांव की गलियों में...
Dit verhaal komt uit de August 2025-editie van Aha Zindagi.
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