Poging GOUD - Vrij
कर्ज और उधारी के भरोसे हैं लोकतंत्र के दिव्य स्वप्न
Modern Kheti - Hindi
|December 15, 2023
देहाती कहावत घर में नहीं है दानं, अम्मा चली भुनाने। सौं टका देश के उन पांच राज्यों पर लागू होती है, जहां आगामी दिनों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव उस दौर में हो रहे हैं जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। विश्व में दो बड़े युद्ध चल रहे हैं। लेकिन कर्ज में गले तक डूबे देश के यह चुनावी राज्यों के राजनैतिक दल वोट पाने के लिए उन योजनाओं के सपने दिखा रहे हैं जो विकसित होने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए कैंसर से कम नहीं हैं।
कर्जे से डूबे यह चुनावी राज्य नई सरकार के गठन में उन मुफ्त योजनाओं को देने का वायदा कर रहे हैं, जो राज्य की भविष्यकालीन आवश्यकताओं एवं उसके अनुरूप विकास को पूर्णता ठप्प करने के स्पष्ट संकेत के रूप में है। देश के पांच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिजोरम में अगले माह राज्य विधानसभा के लिए मतदान होना है। राज्यों में चुनाव मैदान में उतरे राजनैतिक दलों सहित राज्यों की सरकारें जनता का मत हासिल करने के लिए उन योजनाओं को देने का वायदा कर मुफ्त की रहे हैं जो जनता को खैरात देने वाली है। शासन को कर्जदार बनाने के साथ भविष्य के विकास के कदमताल को रोकने वाली है। वर्तमान हकीकत यह है कि इन राज्यों के खजानों में उधार का पैसा डालकर मुश्किलों से प्रशासनिक व्यवस्थाओं की आपूर्ति की जा रही है। देश के उच्चतम न्यायालय ने भी एक जनहित याचिका के संदर्भ में मध्यप्रदेश, राजस्थान, केन्द्र सरकार एवं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से राज्यों में मुफ्त घोषणाओं के आर्थिक आधार को टटोलने नोटिस जारी किया है। भारतीय रिर्जव बैंक ने 31 मार्च 2023 को जारी अपनी रिर्पोट में मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब एवं पश्चिम बंगाल की राज्य की आय का 35 फीसदी हिस्सा उन योजनाओं पर खर्च करने का दोषी माना है जो विकास के तंत्र को पूर्णता ठप्प करता है। राज्यों के आगामी त्रैमासिक खर्चे माह अक्टूबर से दिसम्बर की अवधि में प्रशासनिक खर्चों की पूर्ति के लिए देश के सभी राज्यों ने 227 लाख करोड़ कर्जे की मांग भारतीय रिजर्व बैंक के समुख रखी थी। मांग की इस राशि में 18.56 फीसदी की हिस्सेदारी मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना राज्यों की है, जहां आगामी दिनों में राज्य विधानसभा के चुनाव सम्पन्न होना है। इन राज्यों में कर्ज मांग वृद्धि का कारण राज्य के बजट अनुमानों से बहुत अधिक वह घोषणाएं हैं जो मतदाता को आकर्षित करती हैं। घोषणाओं के प्रतिसाद में मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित होने के बजाए मुफ्त का दान है। इन योजनाओं को लागू करने एवं उनके प्रचार-प्रसार में राज्य अत्याधिक राशि को खर्च कर चुके हैं। इन चुनावी राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) एवं राज्यों के लिए गये कर्ज की तुलना असामान्य अंतर को दर्शाने वाली है। उक्त राज्यों पर कर्जे की मात्रा रिर्जव बैंक की तय सीमा से बहुत अधिक हो चुकी है जो कि राज्य के विकास पर पू
Dit verhaal komt uit de December 15, 2023-editie van Modern Kheti - Hindi.
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