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टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान
Naye Pallav
|Naye Pallav 20
समुद्रतट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था। अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिये कहा। टिटिहरे ने कहा "यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर।"
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टिटिहरी - "समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरें मतवाले हाथी को भी खींच कर ले जाती हैं, इसलिये हमें इन लहरों से दूर कोई स्थान देख रखना चाहिये।"
टिटिहरा - "समुद्र इतना दुःसाहसी नहीं है कि वह मेरी सन्तान को हानि पहुंचाये। वह मुझ से डरता है। इसलिये तू निःशंक होकर यहीं तट पर अंडे दे दे।"
समुद्र ने टिटिहरे की ये बातें सुन लीं। उसने सोचा- 'यह टिटिहरा बहुत अभिमानी है। आकाश की ओर टांगें करके भी यह इसीलिये सोता है। कि इन टांगों पर गिरते हुए आकाश को थाम लेगा। इसके अभिमान का भंग होना चाहिये।' यह सोचकर उसने ज्वार आने पर टिटिहरी के अंडों को लहरों में बहा दिया।
टिटिहरी जब दूसरे दिन आई तो अंडों को बहता देखकर रोती-बिलखती टिटिहरे से बोली "मूर्ख ! मैंने पहले ही कहा था कि समुद्र की लहरें इन्हें बहा ले जाएंगी। किन्तु तूने अभिमानवश मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। अपने प्रियजनों के कथन पर भी जो कान नहीं देता, उसकी दुर्गति होती ही है। इसके अतिरिक्त बुद्धिमानों में भी वही बुद्धिमान सफल होते हैं जो बिना आई विपत्ति का पहले से ही उपाय सोचते हैं और जिनकी बुद्धि तत्काल अपनी रक्षा का उपाय सोच लेती है। 'जो होगा, देखा जायगा कहने वाले शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।"
Denne historien er fra Naye Pallav 20-utgaven av Naye Pallav.
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