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समर्थ बनें संसदीय समितियां

Dainik Jagran

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October 06, 2025

जब संसद आभा खो रही है। शांति से समाधान खोजने वाली संस्थाएं नहीं हैं, तब संसदीय समितियों को शक्तिशाली बनाने पर ठोस विचार होना चाहिए

- हृदयनारायण दीक्षित

समर्थ बनें संसदीय समितियां

संसद की स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर दो साल करने का विचार चल रहा है। सांसदों की शिकायत है कि एक साल की अवधि में किसी विषय विशेष पर वस्तुपरक अध्ययन और सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाते। सरकारें विधायिका के समक्ष जवाबदेह हैं। यह जवाबदेही संसदीय प्रश्नों, संकल्पों और अविश्वास प्रस्ताव आदि के माध्यम से होती है। संसदीय समितियां भी इस कार्य में महत्वपूर्ण सहयोग करती हैं। समिति सदन का ही अंग होती हैं। राष्ट्र के सामने तमाम जटिल प्रश्न आते रहते हैं। तमाम मुद्दे आते हैं। महत्वपूर्ण मामलों में चर्चा में काफी समय लगता है। कुछ मुद्दों पर विषय विशेषज्ञों द्वारा गहराई से अध्ययन की आवश्यकता होती है। कुछ ऐसे भी मसले होते हैं, जिनका स्वरूप तकनीकी होता है। संसद का समय ऐसे छोटे मुद्दे एवं अनावश्यक शोर व्यवधानों को निपटाने में ही लग जाता है। समिति प्रणाली से संसद का समय बच जाता है। भारतीय संसदीय व्यवस्था में याचिका समिति, विशेषाधिकार समिति, सरकारी आश्वासन संबंधी समिति स्थायी समितियां हैं। लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों से मिलकर बनी संयुक्त संसदीय समिति के अलावा लोकसभा की अलग समितियां भी हैं। किसी विषय पर गठित समितियों का कार्यकाल प्रतिवेदन देने तक सीमित रहता है। समितियों की नियुक्ति, कार्यकाल, कृत्य तथा कार्य संचालन की प्रक्रिया का नियमन अध्यक्ष द्वारा किया जाता है। लोक लेखा समिति सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति संबंधी समिति के सदस्यों का निर्वाचन सभा द्वारा एक वर्ष के लिए किया जाता है।

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