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बिहार में 'माउंटेन मैन' के मकान से बदलेगी दलित सियासत की दिशा

Aaj Samaaj

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August 23, 2025

बिहार के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी ने लोगों के लिए राह क्या बनाई कि अमर ही हो गए। अब उनका मकान बन रहा है। इसे लेकर जिस तरह का शोर है, उससे प्रतीत हो रहा है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में वह दलित सियासत की दिशा न बदल दे। आइए, सबसे पहले 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी को जानते और समझते हैं।

- राजीव रंजन तिवारी

बिहार में 'माउंटेन मैन' के मकान से बदलेगी दलित सियासत की दिशा

हफीज जालंधरी का शेर है 'आने वाले, जाने वाले हर जमाने के लिए। आदमी मजदूर है राहें बनाने के लिए'। जी हां, सही पढ़ा आपने। बिहार के 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी ने लोगों के लिए राह क्या बनाई कि अमर ही हो गए। अब उनका मकान बन रहा है। इसे लेकर जिस तरह का शोर है, उससे प्रतीत हो रहा है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में वह दलित सियासत की दिशा न बदल दे। आइए, सबसे पहले 'माउंटेन मैन' दशरथ मांझी को जानते और समझते हैं। दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1934 को बिहार के गयाजी जिले के गहलौर गांव में हुआ था। उनका निधन 17 अगस्त 2007 को हुआ। दशरथ मांझी को 'माउंटेन मैन' कहा जाता है। दरअसल, दशरथ मांझी गहलौर गांव के एक बेहद गरीब मजदूर थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबे, 30 फुट चौड़े और 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर एक सड़क बना डाली थी। 22 वर्षों के परिश्रम के बाद दशरथ मांझी के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 से घटाकर 15 किलोमीटर कर दिया। जानकार बताते हैं कि एक बार दशरथ मांझी ने कहा था कि अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा। संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं। उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो। बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो। हर रात के बाद दिन तो आता ही है। दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे। उनकी जाति मुसहर भुइयां है, जो अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में आती है।

शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की थी। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जुनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी।

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