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तमगे की तौहीन !
DASTAKTIMES
|March 2023
बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा देश के कई राज्यों में दर्जनों कुश्ती प्रतियोगिताएं जीतने वाला उपेन्द्र जब अपने मेडल और प्रशस्तिपत्रों को दिखाता है तो दोनों हाथ भी कम पड़ जाते हैं। इसके बावजूद उपेन्द्र की बदकिस्मती है कि खिलाड़ियों को प्रमुखता से नौकरी देने वाली सरकार से वह रोजगार की सुविधा हासिल नहीं कर पाया है। पिछले बीस वर्षों से उत्तराखंड के काशीपुर में दिहाड़ी पर काम कर उपेन्द्र अपने परिवार का पालन कर रहा है।
तब वह महज 14 साल का था, जब गांव में डकैती डालने आए डकैतों से अकेले ही भिड़ गया था। बदमाशों से उसको अकेला लड़ता देख उसके एक दोस्त ने भी इस संघर्ष में उसका साथ दिया। हालांकि डकैतों ने उसके दोस्त को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। हो सकता था कि वह भी डाकुओं की गोली का शिकार हो जाता, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और लूट का माल ले जा रहे दो डकैतों को कसकर पकड़ लिया और तब तक पकड़े रखा जब तक गांव वालों ने आकर दोनों डकैतों को चारों तरफ से घेर नहीं लिया। बाकी डकैत हालांकि फरार हो गये थे। उसकी इस बहादुरी पर तत्कालीन जिलाधिकारी ने सम्मानित किया और वीरता का प्रशस्तिपत्र दिया। इसके साथ ही डीएम ने वादा किया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे पुलिस की नौकरी में लगा दिया जाएगा।
बिहार के बक्सर जिले के डुमरी गांव के निवासी प्रसन कुंवर का बेटा उपेन्द्र कुमार इस घटना के बाद पहलवानी के अखाड़े में उतर गया। इसके बाद तो बिहार में जिला स्तर से लेकर राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में उसकी जीत का सिलसिला चलता रहा। इसी दौरान वह रोजगार की तलाश में उत्तराखंड के काशीपुर में आ गया। यहां भी अखाड़ों में जौहर दिखाने का उसका सिलसिला जारी रहा। उत्तराखंड के सरी से लेकर हिन्द केसरी तक उसने न जाने कितनी ही प्रतियोगिताओं में मेडल हासिल कर सूबे का गौरव बढ़ाया। बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा देश के कई राज्यों में प्रतियोगिताएं जीतने वाला यह नेशनल पहलवान जब अपने मेडल और प्रशस्तिपत्रों को दिखाता है तो दोनों हाथ भी कम पड़ जाते हैं।
Denne historien er fra March 2023-utgaven av DASTAKTIMES.
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