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अद्वैतवाद के प्रणेता जगदुरु शंकराचार्य

Sadhana Path

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May 2025

भारतीय परंपरा को एक सूत्र में बांधने का श्रेय जगद्गुरू शंकराचार्य को जाता है। सनातन धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए शंकराचार्य भारत में चार मठों की स्थापना की।

- - अभिषेक मिश्रा

अद्वैतवाद के प्रणेता जगदुरु शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य भारतीय परंपरा के एक महान विचारक, संत और धार्मिक सुधारक थे, जिन्होंने 8वीं शताब्दी में हिंदू धर्म के अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को प्रसारित किया। उनका जन्म दक्षिण भारत के केरल राज्य के कालाडी गांव में हुआ था।

'ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या'

अर्थात 'ब्रह्म ही सत्य है, यह संसार मिथ्या है।'

यह श्लोक शंकराचार्य के अद्वैत सिद्धांत को व्यक्त करता है, जिसमें वे कहते हैं कि ब्रह्म ही सच्ची वास्तविकता है और जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह केवल माया (भ्रम) है।

आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार के लिए भारत के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी, जो आज भी प्रसिद्ध हैं- ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड), श्रृंगेरी मठ (कर्नाटक), गोवर्धन मठ (पुरी, ओडिशा) और द्वारका शारदा पीठ (द्वारका, गुजरात) इन मठों के माध्यम से उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का प्रचार किया और हिन्दू धर्म को एक नई दिशा दी। उनकी प्रमुख कृतियां 'ब्रह्मसूत्र भाष्य', 'भगवद्‌गीता भाष्य' और 'उपनिषद भाष्य' हैं। वे वेदों, उपनिषदों और भगवद्‌गीता के गहरे जानकार थे और उन्होंने इन ग्रंथों का सरल और स्पष्ट रूप से व्याख्यान किया।

उपरोक्त संक्षिप्त जानकारी हमें उनके बारे में समझने में मदद करेगी। अब बात करते हैं कि आखिर क्यों आज भी उनका स्मरण किया जा रहा है इसकी मुख्यतः दो वजहें हो सकती हैं, पहली- उनकी प्रासंगिकता और दूसरी- उनका पुनर्पाठ वह भी आलोचनात्मक दृष्टि से।

आदि शंकराचार्य की प्रासंगिकता

आदि शंकराचार्य जी की प्रासंगिकता आज के युग में पहले से कहीं अधिक है। उन्होंने भारतवर्ष में धार्मिक और दार्शनिक एकता की पुनर्स्थापना की, जब देश अनेक मत-मतांतरों और अंधविश्वासों से ग्रस्त था। उनका अद्वैत वेदांत यह सिखाता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है- 'अहं ब्रह्मास्मि' और 'तत्वमसि' जैसे महावाक्य आज भी मानवता को आत्मबोध की ओर ले जाते हैं।

उन्होंने ज्ञान, तर्क और शास्त्रों के माध्यम से हिंदू धर्म की रक्षा की और चार मठों की स्थापना कर एक सुदृढ़ धार्मिक व्यवस्था दी, जो आज भी वैदिक परंपरा को जीवित रखे हुए है। उनका जीवन संयम, त्याग और राष्ट्र के लिए समर्पण का प्रतीक है।

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