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ले सर्व सुहागन करवड़ा....
Sadhana Path
|October 2023
कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अपने अखण्ड सौभाग्य व पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनें श्रद्धापूर्वक करवाचौथ का व्रत रखती हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि स्थानों पर यह पर्व विशेषरूप से मनाया जाता है। 'करवे' का अर्थ है- मिट्टी का बर्तन और 'चौथ' का अर्थ है- चतुर्थी।
'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्त करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ट॥'
उपरोक्त मंत्र से संकल्प लेकर व्रत की शुरुआत कर के सर्वप्रथम गणेश जी भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय व चंद्रमा की पूजा की जाती है। संकल्प लेने से पहले सूर्योदय से पूर्व सुहागिनों का स्नान करना, स्वच्छ कपड़े व शृंगार जरूरी होता है। पूजा के बाद नैवेद्य के रूप में 'सरगी' का सेवन किया जाता है। इसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखने के बाद रात को चांद के दर्शन कर व अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत सम्पूर्ण होता है।
पूजा-विधि
करवा लेकर उस पर स्वस्तिक का निशान बनाएं व उस पर मौली बांध दें। करवे में चावल या गेहूं भर दें एवं उसके ढक्कन पर मिठाई व शगुन रखें। कथा सुनते समय चावल के 13 दाने अपने हाथ में रखें। बाद में उन्हें पानी भरे लोटे में डाल कर एक ओर पूजास्थल पर रख दें। अपनी सास के पैरों को छूकर उनका आशीर्वाद लें व करवा उन्हें दे दें। रात को चांद निकलने के बाद पानी से भरे लोटे द्वारा चांद को अर्घ्य दें। तब अन्न ग्रहण करें।
करवा चौथ की कथा
Denne historien er fra October 2023-utgaven av Sadhana Path.
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