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भगवान भी प्रेम के भूखे होते हैं

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September 2023

संसार के सब मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सब को प्रेम चाहिए और सब प्रेम भी करते हैं, परन्तु प्रेम को प्रकट करने का तरीका सबका R स अलग-अलग होता है।

- सुनित भास्कर

भगवान भी प्रेम के भूखे होते हैं

कुछ लोग प्रेम और प्यार को भी एक ही समझ लेते हैं किन्तु प्रेम और प्यार की अलग-अलग परिभाषा है, विभिन्न धारणाएं है, प्रेम के बिना जीवन अधूरा है इसलिए मनुष्य को ही नहीं भगवान को भी जब अवसर मिलता है तो वो प्रेम की मिठास लेने से नहीं चूकते। स्वयं राम बनकर इस पृथ्वी पर आये तो अपने लिए 3 मांओं का प्रेम पाया क्योंकि उनको मालूम है प्रेम मिलना कठिन होता है, अब ना जाने कब अवतार लूंगा इसलिए पहले ही अपने लिये ममता के सागर में गौते लगाने के लिए 3 मां की ममता का इंतजाम कर लिया, जब श्रीकृष्ण बन कर आये तो सम्पूर्ण संसार को प्रेममय् कर दिया, हर तरफ प्रेम फैला दिया, यहां भी अपने लिए स्वयं दो-दो मांओं का वात्सल्य लिया, यशोदा का नन्दलाल बन गया, उनके प्रेम में डूब गया, वैकुण्ठ छोड़ कर एक छोटे से गांव में प्रेम की गंगा में खुद भी डूबे और पूरे वृन्दावन, मथुरा, संसार और तीनों लोकों को डूबा दिया। जब भी मौका मिले की कोई उनसे प्रेम करें तो वो अपने प्रेमी के लिए वैकुण्ठ तक छोड़ देते हैं उसके पास आ जाते हैं भगवान कहते हैं- 'तुम कुछ मत करों, मुझ पर छोड़ दो सब कुछ, बस मुझसे प्रेम करों, मेरी भक्ति करों । ऐसा ही एक बार एक भगवान की एक भक्त मथुरा में दूध बेचने जाया करती थी, रास्ते में जमुना दूध में पानी भी मिला लिया करती थी से ताकि ज्यादा दूध हो जाये, उस दूध से कुछ दूध निकाल कर ठाकुर जी के मंदिर में दिया करती थी ठाकुरजी के भोग के लिए, बाकि दूध को बाजार में बेच कर अपना गुजारा करती थी। उस महिला के लाये हुये दूध से ठाकुर जी को प्रतिदिन भोग ल

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ध्यान एक प्रक्रिया है

अभय की खोज हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण खोज है। हम अभय बनें, डरना छोड़ें। जिस व्यक्ति ने अभय का पाठ नहीं पढ़ा, उसका विचार सही नहीं होगा। उसका विचार भय से प्रभावित विचार होगा।

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मगल सूर्य के बाद चौथा व सातवां बड़ा ग्रह माना जाता है इसकी सूर्य से लगभग दूरी 22 करोड़ 79 लाख किलोमीटर हैं। इस ग्रह का व्यास लगभग तकरीबन 6794 किलोमीटर है।

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आनंद में रहना वास्तविक स्वर्ग है

गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि स्वर्ग के साम्राज्य को पाने के लिए वास्तव में मनुष्य को केवल कर्मों के फलों को त्यागने की आवश्यकता है। ईश्वर ने मनुष्य को इस जीवन में भूख और इच्छाओं के साथ ऐसी परिस्थितियों में भेजा है कि उसे कर्म करना ही पड़ेगा। कार्य के बिना मानव सभ्यता रोग, अकाल और अव्यवस्था का जंगल बन जाएगी। यदि संसार के सभी लोग अपनी भौतिक सभ्यता त्याग कर जंगलों में रहें, तो जंगलों को शहरों में बदलना पड़ेगा, अन्यथा वहां के निवासी स्वच्छता की कमी के कारण मर जाएंगे। दूसरी ओर भौतिक सभ्यता अपूर्णताओं और दुःखों से भरी पड़ी है। तो किस सम्भव उपाय का समर्थन किया गया?

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मंदिरों में सिमटा रहस्य

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ध्यान की एक विधि नक्षत्र मेडिटेशन

पंडित अजय भाम्बी जी ने ध्यान की एक ऐसी खोजी है जिसका व्यवहारिक प्रयोग करके कोई भी व्यक्ति अपने भीतर की बंद ऊर्जा के स्रोत को जान सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति आकाश से ऊर्जा लेकर न केवल अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है बल्कि मुक्ति भी प्राप्त कर सकता है।

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