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भूमि सुधार के लिए आवश्यक हैं देसी खादें

Modern Kheti - Hindi

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15th September 2022

देसी खाद भूमि की उपजाऊ शक्ति बरकरार रखने के अलावा भूमि के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार करती है। इनके प्रयोग से भूमि के खाद्य तत्व संभालने की शक्ति बढ़ती है। देसी खादों का प्रयोग फसलों में प्रयोग की गई रासायनिक खादों के प्रभाव को बढ़ाती हैं।

- डॉ. मेहरबान सिंह, डॉ. हरगोपाल सिंह, दीपक सचदे

भूमि सुधार के लिए आवश्यक हैं देसी खादें

मौजूदा समय में किसान अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग कर रहे हैं जिस कारण भूमि की सेहत में गिरावट आ रही है और भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है। यदि देखा जाए तो हरित क्रांति की शुरूआत में आधा अथवा एक थैला यूरिया का प्रति एकड़ गेहूं में डालने से उत्पादन पूरा प्राप्त होता था। परन्तु आज किसान डी.ए.पी. के साथ-साथ 3-4 थैले यूरिया के डाल रहा है परन्तु फिर भी उत्पादन में वृद्धि नहीं हो रही। इसका कारण यह है कि शुरूआत में हमारी भूमि में भी कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक थी जिस कारण कम खाद से उत्पादन पूरा प्राप्त होता है। आज हम अधिक उत्पादन लेने के लिए अधिक से अधिक रासायनिक खादों का प्रयोग कर रहे हैं जिससे उत्पादन में वृद्धि नहीं हो रही बल्कि कीट व रोगों का हमला बढ़ने से कृषि लागतों में वृद्धि हो रही है जिस कारण कृषि आमदनी कम हो रही है। इसलिए यह समझना समय की आवश्यकता है कि देसी अथवा हरी खादों के प्रयोग की कमी के कारण हमारी भूमि की उपजाऊ शक्ति व सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। भूमि का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। इसलिए भूमि की सेहत व उपजाऊ शक्ति को बरकरार रखने के लिए देसी व हरी खादों का प्रयोग करना समय की आवश्यकता भी है।

जैविक खाद अथवा देसी खाद वह खाद है जो पशुओं के मलमूत्र, फार्म से मिल रहे फसलों के अवशेष अथवा कृषि उपज पर आधारित कारखानों से प्राप्त होती है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, मुर्गियों की खाद, गंडोया खाद, प्रैस-मड, गोबर गैस प्लांट की सलरी, धान के पुआल की राख इत्यादि इस श्रेणी में आती हैं। इनमें से गोबर की खाद सबसे अधिक प्रचलित है परन्तु इनकी सांभ- संभाल में बहुत कमियां देखी जाती हैं। इसी तरह हरी खाद से भावार्थ खेत में किसी फलीदार फसल के हरे पदार्थ को भूमि में दबाने से है ताकि यह दबी फसल बाद में बोई गई फसल के लिए लाभदायक हो सके। ढैचा, ग्वार, रवां, मूंग इत्यादि की खेती इस उद्देश्य के लिए की जाती है।

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