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Dainik Bhaskar Gondia - May 26, 2025

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Dainik Bhaskar Gondia
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Dainik Bhaskar Gondia Description:

Dainik Bhaskar is present in 2 states in Hindi language in Madhya Pradesh and in Maharashtra. More than 25 year old flagship Hindi newspaper of Bhaskar Prakashan Group Only Hindi newspaper to have clear leadership in all its major markets with well diversified readership across various states Spread in 2 states with 7 editions and 43 district sub- editions Bhaskar Prakashan Pvt Ltd newspapers has an average daily readership of 1.85 million readers.

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May 26, 2025

अक्षय ऊर्जा की क्षमता आधी ही काम आ रही, क्योंकि अभी स्टोरेज इन्फ्रा तैयार नहीं है!

दुनिया का तीसरा बड़ा एनर्जी मार्केट भारत ऐतिहासिक बदलाव के मुहाने पर है। हम तेजी से बिजली उत्पादन क्षमता में रिन्युएबल एनर्जी, खासकर सोलर जैसी अक्षय ऊर्जा जोड़ रहे हैं। 2024-25 में 29.52 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई। इसमें सोलर एनर्जी की हिस्सेदारी 23.83 गीगावॉट रही। इससे 1 साल में अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 198.75 से बढ़कर रिकॉर्ड 228.27 गीगावॉट हो गई। लक्ष्य 2030 तक कोयला-पेट्रोलियम से इतर गैर-पारंपरिक स्रोतों से 500 गीगावॉट की क्षमता हासिल करना है। 5 साल बचे हैं और हम आधा सफर तय नहीं कर पाए हैं। ऐसे में समझते हैं कि क्या 2030 तक लक्ष्य हासिल होगा?

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मदरसों में आधुनिक शिक्षा देना ठीक पर मकसद सही हो : प्रतापगढ़ी

मदरसों के आधुनिकीकरण का कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष इमरान प्रतापगढ़ी ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा है- देश भर में मदरसों का आधुनिकीकरण कर दिया जाना चाहिए। लेकिन ईमानदारी आवश्यक है। मकसद सही हो। रविवार को विमानतल पर प्रतापगढ़ी ने चर्चा की। एक सवाल पर उन्होंने कहा-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरणों में सेना है। लेकिन भाजपा के नेताओं में लोगों का अपमान करने की होड़ है। हरियाणा के भाजपा सांसद ने शहीद जवान व उनके परिवार की महिला के बारे में जो कहा है वह शर्मनाक है। सेना व शहीद का अपमान किया जा रहा है। सवाल उठता है कि भाजपा के लोगों की ये कौन सी भाषा है, कब तक अपमान करते रहेंगे।

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रेडलाइट एरिया की दास्तां वारांगनाओं के बच्चों को मुख्य धारा में लाने का साहस

विवाहिता के लिए मां बनना दुनिया का सबसे बड़ा सुख होता है। वहीं एक वर्ग ऐसा भी है, जहां मां बनना अभिशाप बन जाता है। यहां बात कर रहे वारांगनाओं की। वारांगनाएं मां बनीं तो उनके बच्चों को बाप का नाम नहीं मिल पाता। वारांगनाओं के बच्चे शिक्षा, स्वास्थ्य समेत समाज की मुख्यधारा से जुड़ नहीं सकते। समाज उन्हें स्वीकार करने में संकोच करता है। कुछ दशक पहले तो वारांगनाओं के बच्चों को पूरी तरह नकार दिया जाता था। एक व्यक्ति ने उनके दर्द को समझा। उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्था तैयार की। इस संस्था अंतर्गत एक आश्रम शुरू किया। दानदाताओं को जोड़ा और वारांगनाओं के बच्चों को गोद लेना शुरू किया। 37 साल में 70 बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य समेत सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा दीं। उन्हें सामान्य जीवनशैली में लाकर मुख्य धारा से जोड़ा। उनमें से 6 लड़कियों व 3 लड़कों का विवाह करा दिया।

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