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दिन निकलते ही जब अंधेरे का घर उजड़ता, जी उठती है जिंदगी !

Dainik Bhaskar Singrouli

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October 12, 2025

मैं ने अपने सबसे असुरक्षित क्षणों में जबजब तुम्हें याद किया है, तब-तब यह सवाल आया कि बीतते समय के साथ मैं तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण रहूंगा कि नहीं ! संभव है, यह प्रश्न तुम्हारे जेहन में भी उठता होगा, क्योंकि जिस तरह से हम बड़े होते हैं; उसमें अपने को किसी के सापेक्ष देखने की ही आदत डाली जाती है। फिर किसी-न-किसी के सापेक्ष हम कमजोर पड़ ही जाते हैं।

- आलोक रंजन नई पीढ़ी के युवा लेखक

अपनी ओर से तुम्हें कहने के लिए मेरे पास बस इतना है कि हमारे आस-पास का समय बदले तो बदले, पर तुम्हारा महत्वपूर्ण होना नहीं बदलेगा ! घनश्याम कुमार देवांश की एक कविता है- 'अच्छी प्रेमिकाएं'। उस कविता की आखिरी दो पंक्तियां मुझे याद रह गई हैं:

दरअसल, वे कितनी अच्छी हैं ये बात सिर्फ उनके प्रेमी जानते हैं।

छोड़कर चले जाने वालों की भी उतनी ही बातें याद रहती हैं, जो प्यारी थीं। रोना वही सब सोचकर तो आता है। जाने के झगड़े लंबी स्मृतियों में नहीं टिकते... कॉफी में कितनी चीनी चाहिए यह सूचना रुकी रहती है... मन के क्लाउड स्टोरेज से डिलीट ही नहीं होती।

जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था ढूंढने निकला था जिसको मैं वही चेहरा न था अमीर कजलाबाश के इस शेर से शुरू होने वाली गजल को चंदन दास की आवाज में सुनिए, कमाल की गजल और सुनाने वाले का क्या पुरकशिश लहजा है! मुझे नहीं पता किसी और ने भी इसे गाया है या नहीं!

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