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धन के मोह में फर्ज से दूर हो रहा चिकित्सा जगत
Sarita
|April First 2025
आज कुकुरमुत्तों की तरह जगहजगह उग रहे निजी अस्पताल पैसा बनाने की फैक्टरी बन गए हैं, जो छोटी सी बीमारी में भी तमाम तरह के टैस्ट करवाते हैं और वह भी अपने कहे हुए पैथलैब्स से.
बात जनवरी 2019 की है. लखनऊ के रहने वाले मोहम्मद हाफिज की बेटी उमराव को अचानक रात में पेटदर्द और उलटी की शिकायत हुई. पतिपत्नी बेटी को ले कर पास बने एक नए अस्पताल की इमरजेंसी विभाग में पहुंचे. वहां उस को एक इंजेक्शन लगाया गया. रात की ड्यूटी पर तैनात जूनियर डॉक्टर ने कहा कि इस से दर्द में आराम आ जाएगा. मगर कुछ देर बाद उमराव के हाथपैर सूजने लगे.
हाथों व गरदन की त्वचा के नीचे खून जमा होने लगा, जिस के चलते वे हिस्से लाल हो गए. यह हालत देख जूनियर डाक्टर के हाथपैर फूल गए. उस ने मोहम्मद हाफिज से कहा कि अपने मरीज को तुरंत किसी बड़े अस्पताल या पीजीआई ले जाओ. देर न करो क्योंकि उस की नब्ज नहीं मिल रही.
मोहम्मद हाफिज घबरा गए. बेटी की जान बचानी थी तो बिना सवालजवाब किए तुरंत एंबुलेंस में ले कर शहर के मशहूर अपोलो मैडिक्स हॉस्पिटल पहुंचे. वहां उमराव को आईसीयू में भर्ती किया गया.
दूसरे दिन सुबह अन्य रिश्तेदार भी अस्पताल पहुंच गए. आईसीयू में दिन में सिर्फ एक बार परिवार के किसी एक व्यक्ति को मरीज को देखने की अनुमति थी. मां उसे देख कर आई. उस समय उमराव बात कर रही थी. शाम को डाक्टर ने कहा कि उमराव को सांस लेने में दिक्कत है, इसलिए उस को वेंटिलेटर पर रखा जा रहा है. परिजन इस से इनकार नहीं कर पाए. जो भी पैसे लगें पर बच्ची की जान बचनी जरूरी थी. शाम को मां देखने गई तब भी वह सांस ले रही थी. आंख खोल कर देख रही थी.
तीसरे दिन दोपहर में डाक्टर ने उमराव के पिता को केबिन में बुलाया और कहा कि उमराव की किडनी काम नहीं कर रही है. उस को डायलिसिस की जरूरत है. आप फौर्म पर साइन कर दीजिए. मोहम्मद हाफिज को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उन की बेटी को क्या हो गया है. उस को तो बस पेटदर्द और उलटी की शिकायत हुई थी. डाक्टर भी साफसाफ नहीं बता रहे थे कि आखिर अचानक उस को क्या बीमारी हो गई.このストーリーは、Sarita の April First 2025 版からのものです。
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