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यह अपनी जड़ों को सींचने जैसा है

Aha Zindagi

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August 2025

नाम और शोहरत पाने के बाद अक्सर लोग अपनी जड़ों को भूल जाते हैं, मगर हिमानी ने अपने गांव भटवाड़ी को गोद लेकर एक मिसाल कायम की है।

यह अपनी जड़ों को सींचने जैसा है

मेरे गांव का नाम भटवाड़ी है। दरअसल जब मैं कई सालों के बाद अपने गांव गई तो मैने देखा वहां 'बहुत सारी दिक़्क़तें हैं। ज़मीन अच्छी है, लेकिन उत्तराखंड में पलायन सबसे बड़ी समस्या है। गांव में काम करने वाले मर्द ही नहीं बचे हैं। जब मैं गांव गई तो 35-36 लोग थे, बस । उनमें 25 औरतें थीं और 10-11 बुजुर्ग। खेत है, लेकिन खेती करने वाला कोई नहीं। जो कुछ थोड़ा बहुत लोग उगाते हैं उसे बंदर, भालू खा जाते हैं। ऐसे में क्या करें। चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं। महिला ने बताया कि मुझे बुख़ार के इलाज के लिए देहरादून जाना पड़ा। एक औरत गर्भवती थी, उसे चार औरतें इस तरह लेकर जा रही थीं जिस तरह अर्थी लेकर जाते हैं, यह हाल है गांव का । इसे देखते हुए मैंने अपने गांव को गोद लेने का फ़ैसला किया। मैं कोई बहुत अमीर नहीं हूं जो अपने गांव को बड़ी-बड़ी सुविधाएं दे सकूं, लेकिन जितना मुझसे हो सकता है, मैं करने की कोशिश कर रही हूं। अभी हंस फाउंडेशन के माध्यम से गांव तक एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध करवाई। बंदर, भालू की वजह से अब मैं ऐसी फसलों के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित कर रही हूं जो ज़मीन के नीचे उगाई जाती हैं जैसे हल्दी व अदरक । जब पैदावार हो जाएगी तो कोशिश करूंगी कि उसे किसी तरह ऑनलाइन बेचकर इन महिलाओं की मदद हो सके। स्कूल की हालत ख़राब है। गांव के स्कूल में बच्चे पढ़ते ही नहीं हैं, सबको अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ना है तो दूर जाकर पढ़ते हैं। इसलिए गांव के स्कूल को कैसे एक मॉडर्न स्कूल बनाया जाए, इस दिशा में भी काम कर रही हूं। मुझे समाज ने जो दिया है, मुझे उसे वापस देना भी चाहिए इस सोच के साथ काम कर रही हूं।

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