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लंकाकाण्ड : छठे दिन का युद्ध राम-रावण युद्ध
Jyotish Sagar
|December 2025
गंगातट पर चल रही रामकथा का 26वाँ दिन चल रहा है, जिसमें लंकाकाण्ड की कथा चल रही है और युद्ध का प्रकरण चल रहा है।
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युद्ध में पाँचवें दिन रावण स्वयं रणभूमि में आया और उसने एक बार तो लक्ष्मण जी को मूर्च्छित कर युद्ध को अपने पक्ष में कर लिया था, परन्तु जैसे ही लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर हुई, तो वे वापस युद्धभूमि में आए और उन्होंने रावण का रथ चूर-चूर कर दिया और सारथी को मार दिया। रावण भी मूर्च्छित हो गया, जिसे दूसरे रथ में वापस लंका ले जाया गया। अब आगे की कथा....
स्वामी जी जोश के साथ कथा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि “रावण जब लंका पहुँचा, तो उसकी मूर्च्छा दूर हो गई। अब उसने यज्ञ करने का फैसला किया, जिसकी भनक गुप्तचरों के माध्यम से विभीषण जी को लग गई। विभीषण जी दौड़कर श्रीराम के समक्ष पहुँचे और उनसे निवेदन किया कि रावण के यज्ञ का विध्वंस करना जरूरी है। यदि वह यज्ञ में सफल हो गया, तो उसे हराना मुश्किल होगा। प्रातःकाल होते ही प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी, अंगद आदि प्रमुख योद्धाओं को यज्ञ का विध्वंस करने के लिए भेजा। वे सभी लंका की प्राचीर पर चढ़कर रावण के महल में जा पहुँचे और रावण को खोजने लगे। महल में पहुँचकर उन्होंने वहाँ के निवासियों को आतंकित कर दिया। शीघ्र ही वे उस स्थान पर पहुँच गए, जहाँ रावण ध्यान और यज्ञ कर रहा था। अंगद आदि योद्धाओं ने रावण को अनेक प्रकार से विचलित करने का प्रयास किया, परन्तु वह अपने स्थान से नहीं उठा। तब वानर योद्धाओं ने रावण के सगे-सम्बन्धियों को प्रताड़ित करना शुरू किया। तब वह क्रोधित होकर उठ खड़ा हुआ और वानरों को मारने लगा। इसी बीच अन्य योद्धाओं ने यज्ञ विध्वंस कर दिया और वहाँ से लौटकर वापस अपने शिविर में आ गए।”
स्वामी जी कुछ क्षण रुककर पुनः कथा का आरम्भ करते हैं। “युद्ध के छठे दिन क्रोध में भरा हुआ रावण अपनी बची हुई सेना और योद्धाओं के साथ रणभूमि में आ डटा और उसने आते ही वानर सेना पर भयंकर आक्रमण किया। उसके क्रोध और आक्रमण को देखकर देवता भी चिन्तित हो उठे। कैसे इस राक्षस से मुक्ति मिलेगी। उन्होंने प्रभु श्रीराम से स्तुति की प्रभु अब आप इसे अधिक न खिलाइए। अब इसका अन्त कीजिए और जानकी जी के दुःखों को भी दूर कीजिए। प्रभु श्रीराम मुसकराकर खड़े हुए। कमर में फेंटा और तरकश कस लिया। हाथों में शार्ङ्ग धनुष ले लिया और रणभूमि की ओर चल पड़े। प्रभु श्रीराम की शोभा को वर्णित करते हुए तुलसीदास जी ने बड़े ही सुन्दर छन्द की रचना की है—
यह कहानी Jyotish Sagar के December 2025 संस्करण से ली गई है।
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