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'ब्रो' और 'सिस' का धर्म संकट
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|July - 2025
नवीन जोशी का उपन्यास 'भूतगांव' उत्तराखंड के गांवों में पलायन और जातिगत भेदभाव की कहानी है। लेखक ने पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन और इसके कारण गांवों के खाली होने के दर्द को दर्शाया है। यह उपन्यास गांवों में सदियों से चले आ रहे जातीय भेदभाव और सामाजिक असमानता को भी उजागर करता है। राजकमल प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित लेखक के उपन्यास ‘भूतगांव' का एक अंश।
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चार दिन बाद मीरा आ सकी और छठे दिन विनायक। दोनों ने आते ही सबसे पहले कुंदन की क्लास ली कि तू लापरवाह है, तू घर में नहीं रहा होगा और पापा कोई काम करने में गिर पड़े होंगे, वर्ना हाथ धोते समय कैसे गिर जाएंगे ? पापा तो बिल्कुल फिट और एक्टिव थे... जरूर तू कुछ छुपा रहा है, सच-सच बता दे...। कुंदन कोई बच्चा या किशोर नहीं था, स्वयं उसके दो बच्चे थे जो अब शादी-शुदा थे। तब भी उसे रुलाई आ गई और वह यह भी नहीं कह सका कि ठीक-ठीक वही हुआ जैसा उसने बताया था। यहां भी मैडम गांगुली ही उसकी मददगार साबित हुईं, जब उन्होंने दोनों को बताया, जैसा कि डॉक्टर ने उन्हें बताया था और उन दोनों को भी बाद में बताने वाले थे, कि मिस्टर नेगी को पहले एकाएक ब्रेन स्ट्रोक हुआ, जिससे उनका अपने शरीर पर कंट्रोल खत्म हो गया और जहां खड़े थे वहीं गिर पड़े। और गिरने का एंगल कुछ ऐसा रहा कि उनकी स्पाइनल कॉर्ड गरदन के पास टूट गई। इसलिए यह न समझा जाए कि गिरने से यह सब हुआ। तब कहीं जाकर मीरा का क्रोध जाता रहा, उसे बहुत जोर का रोना आया और रोते-रोते उसने कुंदन को गले लगा लिया। विनायक, जिसके बाल इस बार आधे से अधिक सफेद हो गए थे, यह बात कुंदन ने उसके आते ही नोट कर ली थी क्योंकि पिछली बार भारत आने पर उसकी जुल्फें अच्छी-भली काली थीं और कुंदन जानता था कि वे डाई नहीं कराते, नहीं रोया। लेकिन उसने कुंदन के कंधे पर हाथ रखकर 'सॉरी' कहा और फिर उसकी पीठ सहलाता रहा था।
यह कहानी DASTAKTIMES के July - 2025 संस्करण से ली गई है।
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