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टिकाऊ कृषि विकास के लिए मृदा स्वास्थ्य आवश्यक...
Modern Kheti - Hindi
|15th October 2024
मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन उसके प्राणों के समान है, जो मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक ऊष्मीकरण ने जैविक कार्बन की ह्रास की दर को और अधिक गति प्रदान की है, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता घट रही है। अतः मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं कार्बन प्रच्छादन को बढ़ाने के लिए अनुशंसित प्रबंधन विधियों को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
सारांश : कृषि के मुख्यतः तीन प्रमुख स्तम्भ हैं-मिट्टी, पानी और बीज परंतु गत कुछ दशकों में परंपरागत कृषि तकनीकों जैसे अत्याधिक जुताई, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग एवं जैविक खाद के कम उपयोग, इत्यादि के कारण मिट्टी की गुणवत्ता में बहुत गिरावट आई है। मृदा में उपस्थित जैविक कार्बन उसके प्राणों के समान है, जो मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों को बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक ऊष्मीकरण ने जैविक कार्बन की ह्रास की दर को और अधिक गति प्रदान की है, जिस कारण मिट्टी की उर्वरता घट रही है। अतः मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने एवं कार्बन प्रच्छादन को बढ़ाने के लिए अनुशंसित प्रबंधन विधियों को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है। अतः संरक्षण खेती, एकीकृत पोषक तत्वों का प्रबंधन, बंजर एवं निम्न कोटि की भूमि को उपजाऊ बनाना, मृदा अपरदन की रोकथाम, सिंचाई प्रबंधन एवं एकीकृत कृषि प्रणाली जैसी अनुशंसित प्रबंधन विधियों को अपनाकर किसान फायदा भी कमा सकते हैं एवं पर्यावरण का संरक्षण करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वैज्ञानिकों के एक अनुमान के अनुसार अगर हम इन अनुशंसित प्रबंधन विधियों के द्वारा मृदा में 1 टन कार्बन की मात्रा को बढ़ाते हैं, तो फसलों की उपज में 20 से 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक की वृद्धि संभव हो सकती है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कार्बन प्रच्छादन जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने एवं हमें एक बेहतर भविष्य प्रदान करने में भी सक्षम है।

यह कहानी Modern Kheti - Hindi के 15th October 2024 संस्करण से ली गई है।
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