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Kendra Bharati - केन्द्र भारती - October 2018

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इस अंक में

Kendra Bharati : October 2018 : जैसी श्रद्धा वैसा इष्ट : श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है - यो यच्छ्रद्धः स एव सः। अर्थात् जिसकी जैसी/जिसमें श्रद्धा हो वह वही हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है - जैसी रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन देखी तैसी।
हमारी सनातन परम्परा से द्वेष रखने वालों ने परिवार पर ही लगातार आक्रमण किए। इसका दुष्फल यह हुआ कि देश की आबादी अस्सी वर्ष में चैगुनी हो गई। परिवार में पाँच भाइयों के बीच एक बेटा हो तो वह सबका लाडला होता था। छोटे परिवार के नाम से ‘हम दो - हमारे दो’ की धारणा ने आबादी को बढ़ाया। परम्परा थी - म्हारो भायो रायाँ को - दूध पिये दस गायाँ को। घर में दस माताएँ हो तो बेटा पैदा करो। कुपोषित माताओं से कुपोषित सन्तान हुई। यो आबादी चैगुनी हुई।
श्राद्ध केवल पुरुखों को याद करना मात्र नहीं है। उनके आदर्शों को अपनाने की भी है। हम पुरुखों के आदर्शों को अपाने की योग्यता खो चुके हैं। देश में गरीबी, भूखमरी का यह कारण है। क्या प्रभू मुर्ति अपने अनुकूल बनाने के लिए भावना में बदलाव नहीं लाएँगे? श्रद्धा का रूप नहीं बदलेंगे?

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विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सांस्कृतिक मासिक हिन्दी पत्रिका "केन्द्र भारती"

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