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इस अंक में

Kendra Bharati : August 2018 : स्वतंत्रता का मोल ::
स्वतंत्रता सबको प्रिय है। क्योंकि स्वतंत्रता मनुष्य का स्वभाव है। यही कारण है कि वह अपनी स्वतंत्रता के लिए छटपटाता है। हमारे देश में लगभग 1000 वर्षों तक विदेशी आक्रमण होते रहे। ग्रीक, हूण, शक, यवन और मुग़ल शासन की प्रताड़ना सहते हुए अपने सांस्कृतिक और अध्यात्मिक विरासत का जतन बड़ी सजगता के साथ हमारे पूर्वजों ने किया। तब जाकर हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा हो सकी। बाद में अंग्रेज आए और लगभग 200 वर्षों तक उन्होंने हमारे भारतवर्ष पर शासन किया। यह एक ऐसा शासन था जिसने वास्तव में हमारे देशवासियों के मन को गुलाम करने में सफलता पायी। देश अपना, भूमि अपनी, खेत अपने, इतिहास अपना, लोग अपने फिर भी सब पर शासन अंग्रेजों का ही चलता था। हम नहीं चाहते थे कि अपने भूमि, भवन, धर्म, संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था पर अंग्रेजों की अधीनता रहे। इसलिए तो हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया, हजारों देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लाखों परिवारों इस स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। और अंततोगत्वा 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश “भारत” स्वतंत्र हुआ। पर क्या हम हमारे बलिदानी वीरों के ‘त्याग और सेवा’ प्राप्त स्वाधीनता के मोल को समझ पाए हैं, इस पर विचार होना चाहिए।

* स्वतंत्रता का श्रेय केवल ‘एक’ को नहीं  
* स्वतंत्रता का दुरुपयोग


स्वतंत्रता मिली है - “राष्ट्रभक्ति की भावना से, समर्पण और बलिदान से”। राष्ट्र का उत्थान भी होगा देशभक्ति भाव के जागरण से। आइए, “देशभक्ति फिर जगे, देश का ये प्राण है” इस भाव का जागरण कर समाज में राष्ट्र चेतना का अलख जगाएं।

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विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सांस्कृतिक मासिक हिन्दी पत्रिका "केन्द्र भारती"

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