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इस अंक में

मनु का कथन है कि जन्म से सब शुद्र हैं | संस्कार से वे द्विज बनते हैं - जन्मना जायते शुद्र: संस्काराद् द्विज उच्यते | संस्कार से ही मनुष्य बनता है | मानवी माता से जन्म लेने मात्र से कोई मनुष्य नहीं बन जाता | संस्कार ही मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं | संस्कारदात्री माता ही होती है | विद्या और जीवनानुभव से संस्कार की पुष्टि होती है | उक्ति है - ऋणं ह वै जायमान: जो भी पैदा हुआ है, वह ऋण स्वरूप होता है | ब्राह्मणी माता से ऋण ब्राह्मण पैदा होता है | क्षत्रिया माता से ऋण क्षत्रिय पैदा होता है | वैश्य माता से ऋण वैश्य उत्पन्न होता है और शुद्र माता से ऋण शुद्र पैदा होता है |इन सब को ऋण से धन बनना पड़ता है | ऋण से धन बनने पर ही मनुष्य धन्य बनता है | संस्कारों से ही मनुष्य ऋण से धन और धन्य बनता है |

संस्कारों से ही मनुष्य का चरित्र बनता है | भारतीय परम्परा में चरित्र को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है | प्रत्येक भारतीय विश्व को चरित्र की शिक्षा देता था | मनु ने कहा है -

एतत् देश प्रसूतस्य सकाशाद् अग्रजन्मन: |
स्वम् स्वम् चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवा: ||

चरित्र की शिक्षा देने के कारण ही भारत विश्वगुरु कहलाता था | मनु ने यह भी कहा है कि एक भी चारित्रिक दोष से मनुष्य नष्ट हो जाता है - छिद्रेण नश्यते नर : | चरित्र व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है, आर्य बनाता है जिसके कारण भारत आर्यावर्त कहलाता है, जिसमें आर्य बार-बार पैदा होते है |

Kendra Bharati - केन्द्र भारती Description:

विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी की सांस्कृतिक मासिक हिन्दी पत्रिका "केन्द्र भारती"

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