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मकर संक्रान्ति एवं सूर्योपासना
Jyotish Sagar
|January 2023
अपार ऊर्जा का सृजन होता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्मस्वरूप हैं। नवग्रहों में प्रमुख ग्रह हैं। सूर्य का वर्ण लाल है। सूर्य के रथ में एक ही चक्र है, जो 'संवत्सर' कहलाता है। इस रथ में 12 आरे हैं, जो बारह मास के प्रतीक हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य शस्त्र हैं।
सूर्य अखिल ब्रह्माण्ड की आकाशगंगा का एक तारा है, जो हम प्राणियों का जीवनदाता है। उन्हें पंचदेवों में स्थान दिया गया है। सूर्य को भास्कर, अंशुमालि, दिवाकर, सूरज, आदित्य, सविता एवं मित्र आदि नामों से भी पुकारा जाता है। सूर्य का एक बड़ा भाग अग्नि का गोला है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। ग्रह-उपग्रह, नक्षत्र आदि उसके चारों ओर परिभ्रमण करते हैं। सूर्य की उपासना भारत ही नहीं, वरन् विश्व के अनेक देशों में प्राचीन काल से चली आ रही है। धर्मग्रन्थों में लिखा है कि जो सूर्यदेव समस्त देवताओं के लिए प्रकाशित रहते हैं, जो देवताओं के पुरोधा नेता हैं तथा जो देवताओं से पहले हुए हैं, उन मंगलदायक भगवान् सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि (छठ पर्व) को सूर्यदेव का जन्मदिवस माना गया है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। सूर्य का जन्म पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार देवमाता अदिति के गर्भ से हुआ। इसलिए उन्हें 'आदित्य' भी कहा गया। सूर्य देवता का एक नाम 'सविता' भी है, जिसका अर्थ है 'सृष्टि करने वाला' | 'सविता सर्व्य प्रसविता।' (निरुक्त 10/31) सूर्य के पिता महर्षि कश्यप हैं। विश्वकर्मा की पुत्री ‘संज्ञा' से इनका विवाह हुआ, जो ‘सन्ध्या’ के रूप में प्रकट हुईं। छाया भी उसी का प्रतीक है।
Cette histoire est tirée de l'édition January 2023 de Jyotish Sagar.
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