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प्रकृति का रास्ता रोकने की सजा
DASTAKTIMES
|October 2025
जाते-जाते भी मानसून उत्तराखंड पर कहर बन कर टूटा। देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सहस्त्रधारा में बादल फटने से बाढ़ आ गई, जिसमें दुकानें बह गईं और कई लोग लापता हो गए। इस बार ऐसा क्या हुआ कि उत्तराखंड में जगह-जगह आई प्राकृतिक आपदाओं से इतना ज्यादा जान-माल का नुकसान हुआ? क्या ये प्रकृति से छेड़छाड़ की सजा है? इन सब सवालों का जवाब तलाशती देहरादून से गोपाल सिंह पोखरिया की रिपोर्ट
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प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह रोका तो नहीं जा सकता, लेकिन उनके कारण होने वाले जानमाल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
वैज्ञानिक और शहरी नियोजन विशेषज्ञ लंबे समय से यह चेतावनी देते आ रहे हैं कि प्रकृति के रास्ते में अवरोध पैदा नहीं करना चाहिए। फिर भी, ऐसा लगता है कि देहरादून जैसे महत्वपूर्ण शहर में हम इस मूलभूत सिद्धांत को भूल चुके हैं। हाल ही में हुई मूसलाधार बारिश और सहस्रधारा क्षेत्र में दो स्थानों पर बादल फटने की घटना ने जो स्थिति उत्पन्न की, उसने स्पष्ट कर दिया कि नदियों के प्राकृतिक मार्ग को अवरुद्ध करने के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं।
सेटेलाइट तस्वीरों ने दून की नदियों पर हुए अतिक्रमण की भयावह तस्वीर को और स्पष्ट किया है। इन तस्वीरों से पता चलता है कि काठबंगला क्षेत्र में रिस्पना नदी की भूमि पर 2003 से 2018 के बीच बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है। वरिष्ठ भूविज्ञानी और एचएनबी गढ़वाल कें द्रीय विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट ने राज्य गठन के महज तीन साल बाद और इसके 15 साल बाद 2018 के तस्वीरों का अध्ययन किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्तमान में जहां काठबंगला क्षेत्र अतिक्रमण से पूरी तरह भर चुका है, वहीं वर्ष 2003 में रिस्पना नदी के दोनों किनारे पूरी तरह खाली थे । इसके साथ ही दोनों किनारों पर जंगलनुमा एक पूरा क्षेत्र था। वहीं, महज 15 साल बाद 2018 की सेटेलाइट तस्वीर में रिस्पना नदी बमुश्किल नज़र आ रही है। सेटेलाइट तस्वीरों में दोनों छोर पर घनी बस्तियां और भवन नज़र आ रहे हैं। इसके अलावा 15 साल पहले का जंगलनुमा भाग 95 प्रतिशत तक गायब हो चुका है।
Cette histoire est tirée de l'édition October 2025 de DASTAKTIMES.
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