बच्चों को गैजेट नहीं, टाइम दें!
DASTAKTIMES
|June 2024
आजकल कम उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने से भी परहेज नहीं करते। इसकी बड़ी वजह है परिवार, संयुक्त परिवार की जगह एकांकी परिवार का बढ़ता चलन। बात यहीं तक सीमित नहीं है, समस्या यह भी है घर में रहते हुए भी लोगों का अधिकांश समय आपसी बातचीत से अधिक मोबाइल, टीवी में गुजरता है। इस वजह से आपस में सामाजिक दूरियां भी बढ़ रही हैं।
एकाकीपन से बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की घातक प्रवृत्ति
भारतीय समाज में अकेलापन एक बड़ी तार्किक और मनोवैज्ञानिक समस्या है। इससे प्रभावित होने वालों में सबसे अधिक संख्या बच्चों और बूढ़ों की है, जिनका ज्यादातर समय घर की चाहरदीवारी के बीच गुजरता है । वे सामाजिक रूप से ज्यादा सशक्त नहीं होते हैं। घर के युवक-युवतियां और कामकाजी मां-बाप तो रोजी-रोटी के चक्कर में सुबह से देर शाम तक घर से बाहर रहते है। ऐसे में घर के भीतर बच्चों का ज्यादातर समय टीवी-मोबाइल के सामने गुजरता है। धीरे-धीरे इस वर्ग को इसकी लत लग जाती है, जिसका सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। आज बच्चों में एकाकीपन है, डिप्रेशन ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे चिकित्सक और बुद्धिजीवी समाज तो चिंतित है ही, इन हालातों से वह मां-बाप भी परेशान रहते हैं जो काम-धंधे के चलते अधिकांश समय घर से बाहर रहते हैं और बच्चों को या तो अकेले अथवा किसी हाउस मेड के सहारे छोड़ने की मजबूरी होती है। बच्चों पर नजर रखने के लिए मां-बाप सीसीटीवी जैसे माध्यमों का तो सहारा ले लेते हैं, लेकिन कोई टेक्नॉलाजी बच्चों के मनोविज्ञान को नहीं समझ सकती है। नतीजा, कम उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने से भी परहेज नहीं करते। इसकी बड़ी वजह है परिवार, संयुक्त परिवार की जगह एकांकी परिवार का बढ़ता चलन । बात यहीं तक सीमित नहीं है, समस्या यह भी है घर में रहते हुए भी लोगों का अधिकांश समय आपसी बातचीत से अधिक मोबाइल, टीवी में गुजरता है। सामाजिक दूरियां भी बढ़ रही हैं। हालांकि कुछ जागरूक अभिभावक अपने बच्चों और बुजुर्गों दोनों के अकेलेपन को कम करने के लिए समय-समय पर तरह-तरह के कदम उठाते भी रहते हैं।
Cette histoire est tirée de l'édition June 2024 de DASTAKTIMES.
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