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मुलायम का सम्मान क्यों लगता है सपा नेताओं को अपमान !
DASTAKTIMES
|February 2023
नेताजी को पद्म विभूषण से बिगड़ सकता है सपा का एम-वाई समीकरण

लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह की सियासत एक ही जैसी हुआ करती थी। दोनों अपने आप को पिछड़ों का नेता कहते थे तो मुसलमान वोटरों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने से परहेज नहीं करते थे। दोनों को 'एम' मतलब मुसलमान और 'वाई' यानी यादव वोटरों पर काफी भरोसा था । एम-वाई के सहारे दोनों ने दशकों तक अपने-अपने राज्य में सत्ता सुख भोगा था।
क्या लोकतंत्र की यही खूबी है कि भारतीय 'जनता पार्टी की उस केंद्र सरकार द्वारा पूर्व सपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसे नेता का नाम पद्म विभूषण के लिए चुना गया जिनकी विचारधारा हमेशा भाजपा के एकदम विपरीत रही थी। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिन्दूवादी राजनीति करती है तो दूसरी ओर मुलायम पर हमेशा तुष्टिकरण की सियासत का आरोप लगता रहा। भाजपा के एजेंडे में हमेशा हिन्दू वोटर आगे रहते हैं तो मुलायम के एजेंडे में मुस्लिम वोटरों को वरीयता दी जाती थी, तथा मुलायम अपने को पिछड़ों का नेता भी कहते थे। मुलायम ने मण्डल कमीशन को लागू कराने के लिए खूब सियासत की थी, जिसके जबाव में हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए बीजेपी ने 'कमंडल' यानी अयोध्या में रामलला का मंदिर बनवाने की मुहिम तेज कर दी थी। कौन भूल सकता है 1990 के उस दौर को जब भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर बनाने का संकल्प लेकर पूरे देश में माहौल गरमा रही थी। उसके सबसे ताकतरवर नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक की यात्रा निकाली गई थी, जिसके राजनैतिक फायदे के लिए बिहार की तत्कालीन सरकार के मुखिया लालू सरकार ने रोक दिया था। यात्रा को रोककर लालू यादव मुलसमानों को खुश करना चाहते थे।
Cette histoire est tirée de l'édition February 2023 de DASTAKTIMES.
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