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दुग्ध ज्वर : दुधारू पशुओं की प्रमुख समस्या
Farm and Food
|October 2025
भारत में दुग्ध ज्वर यानी मिल्क फीवर एक गंभीर समस्या है, जो आमतौर पर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे या कुछ दिनों के बाद होता है. आमतौर पर यह रोग गायों में 5-10 साल की उम्र में अधिक होता है.
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यह रोग गाय व भैंस में तीसरी से 7वीं ब्यांत में अधिक होता है. दुग्ध ज्वर के कारण होने वाला माली नुकसान काफी अधिक हैं और इस में मृत्यु, समय से पहले पशु का अनुत्पादक हो जाना, उपचार लागत और भविष्य के ब्यांत में दूध उत्पादन में कमी होने वाले नुकसान शामिल हैं.
दुधारू पशु के लिए कैल्शियम, फास्फोरस का संतुलन आहार में अति महत्त्वपूर्ण है. पशु के शरीर में ब्याने के तुरंत बाद या कुछ दिन पहले ऊतकों को कैल्शियम की कमी के कारण यह रोग होता है. ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में ब्याने के बाद खीस में अधिक मात्रा में कैल्शियम शरीर से बाहर आ जाता है. नतीजतन, दुग्ध ज्वर यानी मिल्क फीवर हो जाता है, लेकिन इस रोग में पशु का शारीरिक तापमान बढ़ने के बजाय सामान्य से भी कम होता है.
दुग्ध ज्वर का मुख्य कारण खून में कैल्शियम की कमी का होना है. इस की कई वजहें हो सकती हैं. कोलोस्ट्रम व दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम का स्त्राव होना, गर्भावधि के समय पूरी तरह आहार न मिलना, कैल्शियम व फास्फोरस का बैलेंस सही न होना, विटामिन डी की कमी होना, पशु के गर्भकाल के अंतिम समय में महत्त्वपूर्ण मिनरल्स का कम मिलना आदि.
पशुओं को गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान पशुपालक द्वारा कैल्शियम खिलाना कुप्रबंधन में से एक है, जो दुग्ध ज्वर की एक महत्त्वपूर्ण वजह है. अगर गाय को गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान उच्च कैल्शियम वाला आहार दिया जाता है, तो उस का शरीर कैल्शियम का संतुलन बनाए रखने में सक्षम नहीं होगा.
यदि कैल्शियम गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान बाहरी रूप से दिया जाता है, तो पैराथाइराइड ग्रंथि शांत अवस्था में चली जाती है. बाहरी कैल्शियम बंद होने पर कैल्शियम की आवश्यकता को पूरा करने में पशु सक्षम नहीं होता है. नतीजतन, दुधारू पशु में दुग्ध ज्वर के लक्षण दिखने लगते हैं.
Cette histoire est tirée de l'édition October 2025 de Farm and Food.
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