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कपड़े का टुकड़ा

Champak - Hindi

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October First 2025

“मैं यह नहीं चाहता,” इलाकिया के दादाजी गरजते हुए बोले. उन की गहरी भौंहें उन के माथे की झुर्रियों को और गहरा कर रही थीं. "क्या तुम समझते नहीं हो?"

- सर्वमित्र

"हर दिन नहीं होता कि तुम 70 साल के हो जाओ," उस के पापा ने जवाब दिया. उन का लहजा कठोर और अडिग था, "हर दिन नहीं होता कि मैं तुम्हारे लिए रेश्मी धोती लाऊं. क्या तुम..."

उस के पापा बीच में ही बोलते हुए रुक गए, जब उन के लगभग 70 वर्षीय पिताजी तेजी से कमरे से बाहर चले गए.

इलाकिया अपना खुला मुंह बंद नहीं कर पा रही थी. उस के पापा और दादाजी के बीच ऐसा झगड़ा पहले कभी नहीं हुआ था. ऐसा नजारा उस ने पहले कभी नहीं देखा था. वह अपने पापा को डांटते हुए देख कर और अपने मजाकिया, सौम्य स्वभाव वाले दादाजी को अपनी किशोर चचेरी बहन की तरह बातचीत बीच में ही छोड़ जाते देख कर हैरान रह गई.

उस के पापा ने अपनी बेचैनी इलाकिया पर डाल दी और कमरे से बाहर चले गए. इलाकिया ने अपने पापा की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह अपने दादाजी से बात करना चाहती थी. उन्हें क्या हुआ? वे उस के पापा यानी अपने प्यारे बेटे पर क्यों झल्लाए? जैसे ही इलाकिया को पता चला कि उस के पापा ने खुद को कमरे में बंद कर लिया है, वह दबे पांव अपने दादाजी के पास गई. वे बरामदे में झूले पर बैठे, धीरेधीरे झूल रहे थे, चमेली के फूल पिरो रहे थे, ठीक वैसे ही जैसे उन की दिवंगत पत्नी किया करती थीं. फूल पिरोने वाला बूढ़ा आदमी? हां, वह उस के दादाजी थे.

"दादाजी आप ने उन्हें क्यों डांटा? आप ने धोती क्यों नहीं ली? वे आप के लिए ही लाए थे. उन का दिल टूट गया. आप विनम्रता से मना कर सकते थे, है न?” इलाकिया ने अपने सवालों और बयानों को सैंडविच के ढेर की तरह रख दिया और उन के साथ झूले पर बैठ गई.

"तुम्हें लगता है मैं ने धीरे से मना नहीं किया? तुम्हारे पापा तो सुनते ही नहीं. जिद्दी हैं. पिछले दो हफ्ते से वह मुझे इसी बात पर परेशान कर रहा है."

यह नई जानकारी थी. इलकिया को नहीं पता था कि यह रेश्मी धोती का मुद्दा था.

"तो फिर आप एक बार ही क्यों नहीं ले लेते? इस से पापा भी खुश हो जाएंगे." इलाकिया ने कोई उपाय ढूंढ़ने की कोशिश की. “लेकिन मैं दुखी हो जाऊंगा,” उस के दादाजी बुदबुदाए.

इलाकिया ने अपने कानों से इस आवाज को सुन लिया. “ऐसा क्यों? आखिर यह कपड़े का एक टुकड़ा ही तो है.”

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