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योगकारक ग्रहों की अन्तर्दशाओं एवं राह-केतु की दशा के फल
Jyotish Sagar
|February 2020
उडुदायप्रदीप के दशाफध्याय में महादशा-अन्तर्दशा के शुभाशुभ फलों के सिद्धान्तों का वर्णन किया जा रहा है। दशाध्याय के श्लोक 1 और 2 में कहा गया है कि सभी ग्रह अपनी महादशा के अन्तर्गत अपनी ही दशा में मनुष्यों को आत्मभावानुरूपी शुभाशुभ फल नहीं देते और जो अपने सम्बन्धी अथवा जो अपने सधर्मी हैं, उनकी अन्तर्दशा में अपनी दशा का फल देते हैं।

श्लोक 3 में कहा गया है कि महादशानाथ के स्वाभाविक फलों के विपरीत फल देने वाले अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा में विद्वानों को उनके फलों के गुणावगुण के आधार पर दशाफल का निर्धारण करना चाहिए। श्लोक 4 में वर्णित है कि केन्द्रेश अपनी महादशा में त्रिकोणेश की अन्तर्दशा में शुभफल देता है। वह भी वैसा अर्थात् शुभफलदायक नहीं होता, यदि उसका सम्बन्ध त्रिकोणेश
Cette histoire est tirée de l'édition February 2020 de Jyotish Sagar.
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