नारीवादी निगाह से
Samay Patrika
|August 2021
इस किताब की बुनियादी दलील नारीवाद को पितृसत्ता पर अन्तिम विजय का जयघोष सिद्ध नहीं करती इसके बजाय वह समाज के एक क्रमिक लेकिन निर्णायक रूपान्तरण पर जोर देती है ताकि प्रदत्त अस्मिता के पुरातन चिह्नों की प्रासंगिकता हमेशा के लिए खत्म हो जाए। नारीवादी निगाह से देखने का आशय है मुख्यधारा तथा नारीवाद, दोनों की पेचीदगियों को लक्षित करना। यहाँ जैविक शरीर की निर्मिति, जातिआधारित राजनीति द्वारा मुख्यधारा के नारीवाद की आलोचना, समान नागरिक संहिता, यौनिकता और यौनेच्छा, घरेलू श्रम के नारीवादीकरण तथा पितृसत्ता की छाया में पुरुषत्व के निर्माण जैसे मुद्दों की पड़ताल की गई है। एक तरह से यह किताब भारत की नारीवादी राजनीति में लम्बे समय से चली आ रही इस समझ को दोबारा केन्द्र में लाने का जतन करती है कि नारीवाद का सरोकार केवल महिलाओं से नहीं है। इसके उलट, यह किताब बताती है कि नारीवादी राजनीति में कई प्रकार की सत्ता-संरचनाएँ सक्रिय हैं जो इस राजनीति का मुहावरा एक दूसरे से अलग-अलग बिन्दुओं पर अन्तःक्रिया करते हुए गढ़ती हैं।
नारीवादी से मेरा आशय क्या है? नारीवादी नज़रिया इस बात को महत्त्व देता है कि दुनिया में जेंडर के इर्दगिर्द खड़ी दर्जाबन्दी ही वह किल्ली है जिस पर सामाजिक व्यवस्था टिकी हुई है, तथा पुरुष और 'स्त्री जैसे परिचय-चिह्नों के साथ जीना दरअसल दो अलग-अलग सच्चाइयों के साथ जीना होता है। लेकिन इसी के साथ, नारीवादी होने का एक मतलब हर उस प्रभुत्वशाली सत्ता कí
Cette histoire est tirée de l'édition August 2021 de Samay Patrika.
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