मनुष्य का परम धर्म
Naye Pallav|Naye Pallav 19
होली का दिन है। लड्डू के भक्त और रसगुल्ले के प्रेमी पंडित मोटेराम "शास्त्री अपने आंगन में एक टूटी खाट पर सिर झुकाये, चिंता और शोक की मूर्ति बने बैठे हैं। उनकी सहधर्मिणी उनके निकट बैठी हुई उनकी ओर सच्ची सहवेदना की दृष्टि से ताक रही है और अपनी मृदुवाणी से पति की चिंताग्नि को शांत करने की चेष्टा कर रही है।
मुंशी प्रेमचंद
मनुष्य का परम धर्म

पंडितजी बहुत देर तक चिंता में डूबे रहने के पश्चात् उदासीन भाव से बोले – “नसीबा ससुरा ना जाने कहां जाकर सो गया। होली के दिन भी न जागा !"

पंडिताइन - " दिन ही बुरे आ गये हैं। इहां तो जौन ते तुम्हारा हुकुम पावा ओही घड़ी ते सांझ - सबेरे दोनों जून सूरजनरायन से ही बरदान मांगा करिहैं कि कहूं से बुलौवा आवै, सैकड़न दिया तुलसी माई का चढ़ावा, मुदा सब सोय गये। गाढ़ परे कोऊ काम नाहीं आवत है।"

मोटेराम "कुछ नहीं, ये देवी-देवता सब नाम के हैं। हमारे बखत पर काम आवें तब हम जानें कि कोई देवी-देवता। सेंत - मेंत में खानेवाले तो बहुत हैं।" मालपुआ और हलुवा 

पंडिताइन - "का सहर-भर मां अब कोई भलमनई नाहीं रहा ? सब मरि गये?" 

मोटेराम - “सब मर गये, बल्कि सड़ गये। दस-पांच हैं तो साल भर में दो-एक बार जीते हैं। वह भी बहुत हिम्मत की तो रुपये की तीन सेर मिठाई खिला दी। मेरा बस चलता तो इन सबों को सीधे कालेपानी भिजवा देता, यह सब इसी अरियासमाज की करनी है।"

पंडिताइन- "तुमहूं तो घर मां बैठे रहत हो। अब ई जमाने में कोई ऐसन दानी नाहीं है कि घर बैठे नेवता भेज देय । कभू कभू जुबान लड़ा दिया करौ।"

मोटेराम - "तुम कैसे जानती हो कि मैंने जबान नहीं लड़ाई ? ऐसा कौन रईस इस शहर में है, जिसके यहां जाकर मैंने आशीर्वाद न दिया हो; मगर कौन ससुरा सुनता है, सब अपने-अपने रंग में मस्त हैं।"

इतने में पंडित चिन्तामणिजी ने पदार्पण किया। यह पंडित मोटेरामजी के परम मित्र थे। हां, अवस्था कुछ कम थी और उसी के अनुकूल उनकी तोंद भी कुछ उतनी प्रतिभाशाली न थी। 

मोटेराम - "कहो मित्र, क्या समाचार लाये? है कहीं डौल?"

चिंतामणि - " डौल नहीं, अपना सिर है ! अब वह नसीब ही नहीं रहा।"

मोटेराम - "घर ही से आ रहे हो?"

चिंतामणि – "भाई, हम तो साधू हो जायेंगे। जब इस जीवन में कोई सुख ही नहीं रहा तो जीकर क्या करेंगे ? अब बताओ कि आज के दिन अब उत्तम पदार्थ न मिले तो कोई क्योंकर जिये।"

मोटेराम - "हां भाई, बात तो यथार्थ कहते हो।" चिंतामणि – “तो अब तुम्हारा किया कुछ न होगा? साफ-साफ कहो, हम संन्यास ले लें।" 

Esta historia es de la edición Naye Pallav 19 de Naye Pallav.

Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 8500 revistas y periódicos.

Esta historia es de la edición Naye Pallav 19 de Naye Pallav.

Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 8500 revistas y periódicos.

MÁS HISTORIAS DE NAYE PALLAVVer todo
अंधों की सूची में महाराज
Naye Pallav

अंधों की सूची में महाराज

गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?

time-read
2 minutos  |
Naye Pallav 19
कौवे और उल्लू का बैर
Naye Pallav

कौवे और उल्लू का बैर

एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।

time-read
2 minutos  |
Naye Pallav 19
ब्राह्मण और सर्प
Naye Pallav

ब्राह्मण और सर्प

किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एकबार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था।

time-read
1 min  |
Naye Pallav 19
बोलने वाली गुफा
Naye Pallav

बोलने वाली गुफा

किसी जंगल में एक शेर रहता था। एकबार वह दिनभर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला। थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया। उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा। आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करूंगा।

time-read
1 min  |
Naye Pallav 19
अज्ञानी की पहचान के कुछ लक्षण
Naye Pallav

अज्ञानी की पहचान के कुछ लक्षण

गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा - हे अर्जुन ! जो केवल महत्व या प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए ही जीता है, जो केवल मान की ही प्रतीक्षा करता रहता है और आदर सत्कार होने से ही जिसको संतोष होता है, जो पर्वत के शिखर की भांति सदा उपर ही रहना चाहता है और अपने उच्च पद से कभी नीचे नहीं उतरना चाहता, उसके संबंध में समझ लेना चाहिए कि उसमें अज्ञान की ही समृद्धि है।

time-read
7 minutos  |
Naye Pallav 19
टॉर्च बेचनेवाला
Naye Pallav

टॉर्च बेचनेवाला

वह पहले चौराहों पर बिजली के टॉर्च बेचा करता था। बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा। कल फिर दिखा। मगर इस बार उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था।

time-read
6 minutos  |
Naye Pallav 19
मनुष्य का परम धर्म
Naye Pallav

मनुष्य का परम धर्म

होली का दिन है। लड्डू के भक्त और रसगुल्ले के प्रेमी पंडित मोटेराम \"शास्त्री अपने आंगन में एक टूटी खाट पर सिर झुकाये, चिंता और शोक की मूर्ति बने बैठे हैं। उनकी सहधर्मिणी उनके निकट बैठी हुई उनकी ओर सच्ची सहवेदना की दृष्टि से ताक रही है और अपनी मृदुवाणी से पति की चिंताग्नि को शांत करने की चेष्टा कर रही है।

time-read
6 minutos  |
Naye Pallav 19
जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई
Naye Pallav

जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई

व्यंग्य लेखन के बेताज बादशाह श्री हरिशंकर परसाई जबलपुर में हमारे पड़ोसी थे। बचपन से मैं उन्हें परसाई मामा कहती आई हूं । मैंने उनके बूढ़े पिताजी को भी देखा है, जिन्हें सब परसाई दद्दा कहते थे। वह दिनभर घर के बाहर डली खटिया पर लेटे या बैठे तंबाकू खाया करते थे। मैं बचपन में उनके तंबाकू खाने की नकल किया करती थी। सबका मनोरंजन होता और सब बार-बार मुझसे उनके तंबाकू खाने की एक्टिंग करवाते थे।

time-read
5 minutos  |
Naye Pallav 19
जुड़वां भाई
Naye Pallav

जुड़वां भाई

कभी-कभी मूर्ख मर्द जरा-जरा सी बात पर औरतों को पीटा करते हैं। एक गांव में ऐसा ही एक किसान था। उसकी औरत से कोई छोटा-सा नुकसान भी हो जाता, तो वह उसे बगैर मारे न छोड़ता। एकदिन बछड़ा गाय का दूध पी गया। इस पर किसान इतना झल्लाया कि औरत को कई लातें जमाईं। बेचारी रोती हुई घर से भागी। उसे यह न मालूम था कि मैं कहां जा रही हूं। वह किसी ऐसी जगह भाग जाना चाहती थी, जहां उसका शौहर उसे फिर न पा सके।

time-read
3 minutos  |
Naye Pallav 18
कश्मीरी सेब
Naye Pallav

कश्मीरी सेब

कुल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नजर आए। जी ललचा उठा।

time-read
3 minutos  |
Naye Pallav 18