![पत्रकारिता और लेखन](https://cdn.magzter.com/1521053591/1702577619/articles/YjnDoFc_J1704283855429/1704284043918.jpg)
जो लेखक पत्रकार बनते हैं, वे तमाम अज्ञेय लेखकों को अवसर देते हैं। पत्रकारिता अधिकतम आधुनिक मूल्यों की वकालत करती नजर आती है, भले ही वह अशोधित क्यूं न हों, जबकि लेखन गहन चिंतन और परिवर्तनों की। संतुलन बनाने की रिवाजों ने पत्रकारिता को ऐसा मोड़ा कि कमोबेश सारा पत्रकारिता जगत ज्यादा महत्व की सूचना की बराबरी में कम महत्व की सूचना को भी रख देते हैं और बहुधा कम महत्व की सूचना को ज्यादा महत्व की सूचना के बराबर। पत्रकारिता में यह फिल्टरीकरण एक अनावश्यक लोच पैदा करता है। लोच अच्छा हुआ तो ठीक, किंतु यदि लोच बुरा हुआ तो कभी भी, कैसे भी घातक सिद्ध हो सकता है। जैसे एक राजनैतिक दल का दूसरे राजनैतिक दल से तथाकथित संतुलन या सभी प्रचलित धर्मों का सांस्कृतिक परिवेश से परे गैर जरूरी संतुलन। रोजगार से जुड़े स्वाभाविक पत्रकारिता के जगत में 'जस का तस' रख पाना एक चुनौती बना रहता है। दैनिक 'आज' के सम्पादक पराड़कर जी 'क्या लिखूं?' जैसे अमर सम्पादकीय में इन द्विविधाओं को इंगित करते हैं। ऐसी दशा में मानवता की भलाई के तंतुओं की समझदारी बड़ी सहायक सिद्ध हो सकती है।
पत्रकारिता तात्कालिक प्रभाव डालती है, जबकि लेखन अमूमन कॉन्सेप्ट देता है, अतः दूरगामी परिणाम होते हैं। कार्ल मार्क्स का 'दास कैपिटल' लेखन का ऐसा उदाहरण है, जिसने 'रेलीजन अफीम है' तथा 'दुनिया के मजदूरों एक हो, तुम्हारे पास खोने के लिये जंजीरों के अलावा कुछ नहीं है' जैसे विचारों से दुनिया को कई दशकों तक उलट-पुलट कर डाला। किसी 'नई सुबह' के लालच में 'सर्वहारा वर्ग की तानाशाहियों' ने असंख्य हत्याएं कीं। शेक्सपीअर के लेखन 'मर्चेन्ट ऑफ वेनिस' का 'यहूदी' खून चूसने वाले सूदखोर व्यापारी के रूप में अतिचित्रित होकर हिटलरयुग के यहूदियों का कुत्सित 'घेटो या आश्वित्ज' यातनाघर में अनावश्यक संत्रास भुगतता है। यही नहीं, दुष्ट हिटलर तो दार्शनिक नीत्जे के 'उबेरमैन' विचार का नस्लीय दुरूपयोग करने से भी बाज नहीं आया।
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![अंधों की सूची में महाराज](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/pOc8SYjYV1710833916157/1710834265910.jpg)
अंधों की सूची में महाराज
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
![कौवे और उल्लू का बैर](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/hgBV5f-rT1710833769818/1710833902334.jpg)
कौवे और उल्लू का बैर
एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।
![ब्राह्मण और सर्प](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/TXgCJXd0n1710833605911/1710833752965.jpg)
ब्राह्मण और सर्प
किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एकबार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था।
![बोलने वाली गुफा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/A2Q5RHIhL1710833368619/1710833599531.jpg)
बोलने वाली गुफा
किसी जंगल में एक शेर रहता था। एकबार वह दिनभर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला। थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया। उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा। आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करूंगा।
![अज्ञानी की पहचान के कुछ लक्षण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/fC0bbJ3BM1710833021780/1710833364396.jpg)
अज्ञानी की पहचान के कुछ लक्षण
गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा - हे अर्जुन ! जो केवल महत्व या प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए ही जीता है, जो केवल मान की ही प्रतीक्षा करता रहता है और आदर सत्कार होने से ही जिसको संतोष होता है, जो पर्वत के शिखर की भांति सदा उपर ही रहना चाहता है और अपने उच्च पद से कभी नीचे नहीं उतरना चाहता, उसके संबंध में समझ लेना चाहिए कि उसमें अज्ञान की ही समृद्धि है।
![टॉर्च बेचनेवाला](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/-SEssMU5A1710832297243/1710833003897.jpg)
टॉर्च बेचनेवाला
वह पहले चौराहों पर बिजली के टॉर्च बेचा करता था। बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा। कल फिर दिखा। मगर इस बार उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था।
![मनुष्य का परम धर्म](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/FkdTddF6O1710831509289/1710832283739.jpg)
मनुष्य का परम धर्म
होली का दिन है। लड्डू के भक्त और रसगुल्ले के प्रेमी पंडित मोटेराम \"शास्त्री अपने आंगन में एक टूटी खाट पर सिर झुकाये, चिंता और शोक की मूर्ति बने बैठे हैं। उनकी सहधर्मिणी उनके निकट बैठी हुई उनकी ओर सच्ची सहवेदना की दृष्टि से ताक रही है और अपनी मृदुवाणी से पति की चिंताग्नि को शांत करने की चेष्टा कर रही है।
![जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1635583/2Uuw_ankB1710830925172/1710831307347.jpg)
जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई
व्यंग्य लेखन के बेताज बादशाह श्री हरिशंकर परसाई जबलपुर में हमारे पड़ोसी थे। बचपन से मैं उन्हें परसाई मामा कहती आई हूं । मैंने उनके बूढ़े पिताजी को भी देखा है, जिन्हें सब परसाई दद्दा कहते थे। वह दिनभर घर के बाहर डली खटिया पर लेटे या बैठे तंबाकू खाया करते थे। मैं बचपन में उनके तंबाकू खाने की नकल किया करती थी। सबका मनोरंजन होता और सब बार-बार मुझसे उनके तंबाकू खाने की एक्टिंग करवाते थे।
![जुड़वां भाई](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1537166/UXerFBS6D1704285239594/1704285431323.jpg)
जुड़वां भाई
कभी-कभी मूर्ख मर्द जरा-जरा सी बात पर औरतों को पीटा करते हैं। एक गांव में ऐसा ही एक किसान था। उसकी औरत से कोई छोटा-सा नुकसान भी हो जाता, तो वह उसे बगैर मारे न छोड़ता। एकदिन बछड़ा गाय का दूध पी गया। इस पर किसान इतना झल्लाया कि औरत को कई लातें जमाईं। बेचारी रोती हुई घर से भागी। उसे यह न मालूम था कि मैं कहां जा रही हूं। वह किसी ऐसी जगह भाग जाना चाहती थी, जहां उसका शौहर उसे फिर न पा सके।
![कश्मीरी सेब](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/16742/1537166/nqlBhdbg01704285051994/1704285228431.jpg)
कश्मीरी सेब
कुल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नजर आए। जी ललचा उठा।