क्यों दिन-ब-दिन ऐसी होती जा रही हो? अब तो लगता ही नहीं कि तुम वही उर्मिला हो जो अपनी नौकरी पर पहले-पहल आयी थी। क्या खिला हुआ चेहरा-पहनावा भी एक ढंग का था। बोलती तो लगता मधु चू रहा है। सतरह-अठारह साल का नव-जवान खिला हुआ चेहरा, श्यामवर्ण, लाल-लाल होंठ, कमर छूती बाल, खूबसूरती की सारी मिशाल मौजूद! मालूम होता था कि स्वर्ग की परी धरती पर उतर आयी है, पर कुछ सालों में ही उसे ऐसा देखकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया हूं। तुम्हें क्या कष्ट है? मुझे अगर बताओ तो हो सकता है कि डूबते को तिनके का सहारा होने का प्रयास करूं।”
"नहीं बाबा, अब मुझे ऐसे ही रहने दीजिए। भगवान की इच्छा सर्वोपरि है।”
"क्या कहती हो तुम? मनुष्य अगर मन को ठोस कर ले तो तील का ताड़ और ताड़ का तील कर सकता है, तुम तो अभी जवान हो, अच्छा खासा कमाती हो, पति भी वकील है और उनका भी प्रैक्टिस अच्छा ही है। बाल-बच्चे का बोझ है ही नहीं। फिर ऐसी क्या बात है? बोलो न, क्या बात है?"
"बाबा ! मेरी तकलीफ का कोई ओर-छोर नहीं है। आप सुन नहीं पायेंगे, अतः आप न कुरेदें।"
"नहीं उर्मिला.... नहीं। अपनी तकलीफ को अपनी जवान से अपने-पराये को कह देने से कम होती है। तुम सुनाओ तो सही।"
"नहीं बाबा! मेरी दुखभरी कहानी लंबी है। कभी मौका मिलेगा और आप समय देंगे तो सुनाऊंगी, अभी तो मरीजों को सुई देने एवं चार्ट नोट करने का समय हो गया है। डॉ. साहब 'राउन्ड' को आने ही वाले हैं।"
"ठीक है! अर्मि, मैं तुम्हारी कहानी सुनना चाहता हूं। जब कहो, जहां कहो, मैं आ जाऊंगा।" इतना कह मैं अपने काम में लग गया।
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अंधों की सूची में महाराज
गोनू झा के साथ एकदिन मिथिला नरेश अपने बाग में टहल रहे थे। उन्होंने यूं ही गोनू झा से पूछा कि देखना और दृष्टि-सम्पन्न होना एक ही बात है या अलग-अलग अर्थ रखते हैं?
कौवे और उल्लू का बैर
एकबार हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, उल्लू, आदि सब पक्षियों ने सभा करके यह सलाह की कि उनका राजा वैनतेय केवल वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है; व्याधों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता; इसलिये पक्षियों का कोई अन्य राजा चुन लिया जाय। कई दिनों की बैठक के बाद सबने एक सम्मति से सर्वाङग सुन्दर उल्लू को राजा चुना।
ब्राह्मण और सर्प
किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था। एकबार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था। सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था।
बोलने वाली गुफा
किसी जंगल में एक शेर रहता था। एकबार वह दिनभर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला। थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया। उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा। आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करूंगा।
अज्ञानी की पहचान के कुछ लक्षण
गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा - हे अर्जुन ! जो केवल महत्व या प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए ही जीता है, जो केवल मान की ही प्रतीक्षा करता रहता है और आदर सत्कार होने से ही जिसको संतोष होता है, जो पर्वत के शिखर की भांति सदा उपर ही रहना चाहता है और अपने उच्च पद से कभी नीचे नहीं उतरना चाहता, उसके संबंध में समझ लेना चाहिए कि उसमें अज्ञान की ही समृद्धि है।
टॉर्च बेचनेवाला
वह पहले चौराहों पर बिजली के टॉर्च बेचा करता था। बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा। कल फिर दिखा। मगर इस बार उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था।
मनुष्य का परम धर्म
होली का दिन है। लड्डू के भक्त और रसगुल्ले के प्रेमी पंडित मोटेराम \"शास्त्री अपने आंगन में एक टूटी खाट पर सिर झुकाये, चिंता और शोक की मूर्ति बने बैठे हैं। उनकी सहधर्मिणी उनके निकट बैठी हुई उनकी ओर सच्ची सहवेदना की दृष्टि से ताक रही है और अपनी मृदुवाणी से पति की चिंताग्नि को शांत करने की चेष्टा कर रही है।
जबलपुर के महानायक श्री हरिशंकर परसाई
व्यंग्य लेखन के बेताज बादशाह श्री हरिशंकर परसाई जबलपुर में हमारे पड़ोसी थे। बचपन से मैं उन्हें परसाई मामा कहती आई हूं । मैंने उनके बूढ़े पिताजी को भी देखा है, जिन्हें सब परसाई दद्दा कहते थे। वह दिनभर घर के बाहर डली खटिया पर लेटे या बैठे तंबाकू खाया करते थे। मैं बचपन में उनके तंबाकू खाने की नकल किया करती थी। सबका मनोरंजन होता और सब बार-बार मुझसे उनके तंबाकू खाने की एक्टिंग करवाते थे।
जुड़वां भाई
कभी-कभी मूर्ख मर्द जरा-जरा सी बात पर औरतों को पीटा करते हैं। एक गांव में ऐसा ही एक किसान था। उसकी औरत से कोई छोटा-सा नुकसान भी हो जाता, तो वह उसे बगैर मारे न छोड़ता। एकदिन बछड़ा गाय का दूध पी गया। इस पर किसान इतना झल्लाया कि औरत को कई लातें जमाईं। बेचारी रोती हुई घर से भागी। उसे यह न मालूम था कि मैं कहां जा रही हूं। वह किसी ऐसी जगह भाग जाना चाहती थी, जहां उसका शौहर उसे फिर न पा सके।
कश्मीरी सेब
कुल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार, गुलाबी सेब सजे हुए नजर आए। जी ललचा उठा।