अपनी भाषा बढ़ाए आशा
Panchjanya|February 26, 2023
अंग्रेजों का काल यह बता चुका है कि कैसे भारत पर अंग्रेजी लादे जाने के बाद वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत तक घट गई। मातृभाषा में बच्चों द्वारा शीघ्र सीखे जाने के निष्कर्ष कई शोधों में सामने आ चुके हैं। मातृभाषा में शिक्षा देने से ही ज्यादा से ज्यादा मानव संसाधन देश निर्माण में अपना योगदान दे सकेगा
आचार्य राघवेंद्र प्रसाद तिवारी
अपनी भाषा बढ़ाए आशा

नुष्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से एक है भाषा का आविष्कार, परिष्कार एवं अब तक की अजेय यात्रा। संस्कृताचार्य दण्डी उद्घोषणा करते हैं कि यदि भाषा नामक ज्योति अथवा शब्द प्रकाश न होता तो यह संसार अंधकारमय रहता - इदमन्धं तमः कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम्। यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ॥ अर्थात् हम शब्द या भाषा के माध्यम से ही इस ब्रह्मांड और इसके विविध घटकों का परिचय एवं उनके सदुपयोग की प्रेरणा लेते हैं।

शब्द एवं भाषा से हमारा परिचय बचपन में ही हो जाता है। बच्चे के माता-पिता एवं पारिवारिक सदस्य उससे बचपन से ही बातें करते रहते हैं। बच्चा उन शब्दों को प्रारंभ में नहीं समझता किंतु वह ध्वनियों को पकड़ता है और उन पर अपने हाव-भाव प्रकट करता है। धीरे-धीरे वह उन शब्दों का अर्थ समझते हुए उनको व्यवहार में लाता है। परिवार एवं अड़ोसपड़ोस का परिवेश ही उसके लिए भाषा की प्रथम पाठशाला है। बाल्यकाल के परिवेश में बच्चा जो भाषा सीखता है, वही उसकी मातृभाषा है। अतएव मातृभाषा को केवल मां की ही भाषा तक सीमित न करके उसे बच्चे के प्राथमिक परिवेश के संदर्भ में देखना चाहिए । 'शब्दों का सफर' लिखने वाले अजित वडनेरकर का कहना है कि 'मेरा स्पष्ट मत है कि मातृभाषा में 'मातृ' शब्द से अभिप्राय उस परिवेश, स्थान, समूह में बोली जाने वाली भाषा से है जिसमें रहकर कोई भी व्यक्ति अपने बाल्यकाल में दुनिया के सम्पर्क में आता है।

मातृभाषा कितना संवेदनशील विषय है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे पड़ोसी बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन की एक सशक्त मांग मातृभाषा थी। मातृभाषा के महत्त्व को रेखांकित करने और जनसामान्य तक इस विषय को ले जाने के निमित्त ही यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी।

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