![फिर जीवंत हुई परम्परा](https://cdn.magzter.com/1622547313/1673945760/articles/ltUhCfoqR1676368448784/1676368783470.jpg)
जब स्थानीय भाषा, संस्कृति और परंपराओं की बात आती है तो तमिलनाडु की पहचान अन्य किसी भी राज्य की तुलना में अत्यंत आक्रामक राज्य के रूप में की जाती है। यद्यपि यहां 'अब्राहमिक रिलीजन' अपने नाना रूपों में बहुत तेज गति से पैर पसार रहे हैं, परंतु इसे सहज ही देखा जा सकता है कि कन्वर्जन के बावजूद यहां का लोकमन तमिल संस्कृति और परंपराओं को स्वाभाविक रूप से जीने में विश्वास रखता है।
यही कारण है कि 2014 में जब भारतीय जीव-जंतु कल्याण बोर्ड ने 'पशुओं के प्रति क्रूरता और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे' का हवाला देते हुए 'जल्लीकट्टू' पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की और न्यायालय ने इस खेल में बैलों के उपयोग के साथ देशभर में 'बैलगाड़ी दौड़' पर प्रतिबंध लगा दिया, तब तमिल लोकमन उद्वेलित हो उठा था। इसलिए न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए तमिलनाडु सरकार को एक याचिका दायर करनी पड़ी, लेकिन 2015 में शीर्ष न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया। लिहाजा, प्रतिबंध के विरुद्ध व्यापक लोकान्दोलन को देखते हुए विधानसभा ने 2017 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन के लिए एक विधेयक पारित कर 'जल्लीकट्टू' के आयोजन के लिए एक नया रास्ता निकाला।
जल्लीकट्टू की पुरातनता
राज्य सरकार ने 'जल्लीकट्टू' पर प्रतिबंध को अनुचित मानते हुए इसकी प्राचीनता को रेखांकित किया। राज्य सरकार ने इस संबंध में ऐतिहासिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहा था कि जल्लीकट्टू की उत्पत्ति सिन्धु सभ्यता से हुई है। पुरातात्विक स्थल से मिलीं टेराकोटा की तख्तियों पर जल्लीकट्टू उत्सव के अंकन से इसकी प्राचीनता प्रमाणित होती है। संगम साहित्य के पांच तमिल महाकाव्यों में से एक 'सिलप्पाटिकरम' या 'सिलपथिकारम' और अन्य प्राचीन साहित्यिक रचनाओं में 'कलिथोगई' और 'मलाईपादुकादाम', जो कि तमिल साहित्य के 'संगम युग' से संबंधित हैं, उनमें 'जलिकट्टू' के आयोजन और लोकरंजन के संदर्भ उल्लिखित हैं।
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![शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/SIWr3MUpD1678350404814/1678350536289.jpg)
शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
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शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
![फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/McxbrwnTV1678349825721/1678349993901.jpg)
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
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होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
![आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/ahHRByWJi1678349190064/1678349476136.jpg)
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
![नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/iiogaOC4B1678349053687/1678349179023.jpg)
नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
![सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/svMZWaTU-1678348852071/1678349040026.jpg)
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
![जीवनशैली ठीक तो सब ठीक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/Pb70x5v5I1678348590382/1678348848075.jpg)
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
![नाकाम किए मिशनरी](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/25116/1240732/pXR7Tz7zM1678348291074/1678348583361.jpg)
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई