कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
Panchjanya|March 12, 2023
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
प्रमोद जोशी
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और कांग्रेस के नया रायपुर-अधिवेशन को जोड़कर देखें, तो लगता है विचारधारा, संगठन और चुनावी रणनीति की दृष्टि से पार्टी कुछ नया नहीं गढ़ना चाहती। वह 'राहुल गांधी सिद्धांत' पर चल रही है, जो 2019 के चुनाव के पहले तय हुआ था। पार्टी के कार्यक्रमों पर नजर डालें, तो वे 2019 के घोषणापत्र के 'न्याय' कार्यक्रम की कार्बन कॉपी हैं। इसमें न्यूनतम आय और स्वास्थ्य के सार्वभौमिक अधिकार को भी शामिल किया गया है। तब और अब में फर्क केवल इतना है कि पार्टी अध्यक्ष अब मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, जिनकी अपनी कोई लाइन नहीं है। संयोग से परिणाम वैसे नहीं आए, जिनका दावा किया जा रहा है, तो जिम्मेदारी खड़गे ले ही लेंगे। 

कार्यक्रमों पर नजर डालें, तो दिखाई पड़ेगा कि पार्टी ने भाजपा के कार्यक्रमों की तर्ज पर ही अपने कार्यक्रम बनाए हैं। इसमें नयापन कोई नहीं है। इस महाधिवेशन से दो-तीन बातें और स्पष्ट हुई हैं। कांग्रेस अब सोनिया गांधी से बाद की राहुल- प्रियंका पीढ़ी के पूरे नियंत्रण में है। अधिवेशन में जो भी फैसले हुए, वे परिवार की मर्जी को व्यक्त करते हैं। पार्टी में पिछली पीढ़ी के ज्यादातर नेता या तो किनारे कर दिए गए हैं या राहुल के शरणागत हो गए हैं। जी-23 जैसे ग्रुप का दबाव खत्म है। 

Diese Geschichte stammt aus der March 12, 2023-Ausgabe von Panchjanya.

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